♦ वेद ♦
♥ शब्दार्थ व तात्पर्य ♥
→ वेद शब्द विद धातु से बना है
→ जिसका तात्पर्य है जानना। ज्ञान को जानना।
→ किसी विषय को जान कर ही उस विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
→ अतः वेद का सरल अर्थ ज्ञान ही हैं।
→ वेद को श्रुति भी कहा जाता है।
→ श्रु धातु से श्रुति शब्द की उत्त्पति हुई है। श्रु से तात्पर्य है श्रवण या सुनना। ऐसा कहा जाता है कि ऋषियो ने वेद सुने व परमेश्वर ने कहे।
→ सामान्य स्वरुप से समस्त ज्ञान देने योग्य रुचाओ के सहिन्ताओ को वेद की परिभाषा देसकते है।
♥ परम्परागत वेद चार प्रकार के होते हैं,
(1) ऋग्वेद
(2) यजुर्वेद
(3) सामवेद
(4) अथर्ववेद
[1] ऋग्वेद :-
→🏻ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान।
→ इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ।
→🏻ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।
→ इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।
[ 2 ] यजुर्वेद :-
→🏻यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु।
→ यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश।
→ इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा।
→ यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं।
→ इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं।
→ यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है।
→ यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल।
[ 3 ] सामवेद :-
→ साम अर्थात रूपांतरण और संगीत।
→ सौम्यता और उपासना।
→ इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं।
→ ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं।
→ इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं।
→ इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं,
→ 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है।
[ 4 ] अथर्ववेद :
→🏻थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन।
→ ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है।
→ अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं।
→ इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं।
→🏻इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है।
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.