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Friday, 6 November 2015

♥ चार वेद ♥

♦ वेद ♦

♥ शब्दार्थ व तात्पर्य ♥

→ वेद शब्द विद धातु से बना है

→ जिसका तात्पर्य है जानना। ज्ञान को जानना।

→ किसी विषय को जान कर ही उस विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

→ अतः वेद का सरल अर्थ ज्ञान ही हैं।

→ वेद को श्रुति भी कहा जाता है।

→ श्रु धातु से श्रुति शब्द की उत्त्पति हुई है। श्रु से तात्पर्य है श्रवण या सुनना। ऐसा कहा जाता है कि ऋषियो ने वेद सुने व परमेश्वर ने कहे।

→ सामान्य स्वरुप से समस्त ज्ञान देने योग्य रुचाओ के सहिन्ताओ को वेद की परिभाषा देसकते है।

♥ परम्परागत वेद चार प्रकार के होते हैं,

(1) ऋग्वेद
(2) यजुर्वेद
(3) सामवेद
(4) अथर्ववेद

[1] ऋग्वेद :-

→🏻ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान।

→ इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ।

→🏻ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।

→ इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।

[ 2 ] यजुर्वेद :-

→🏻यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु।

→ यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश।

→ इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा।

→ यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं।

→ इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं।

→ यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है।

→ यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल।

[ 3 ] सामवेद :-

→ साम अर्थात रूपांतरण और संगीत।

→ सौम्यता और उपासना।

→ इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं।

→ ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं।

→ इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं।

→ इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं,

→ 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है।

[ 4 ] अथर्ववेद :

→🏻थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन।

→ ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है।

→ अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं।

→ इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं।

→🏻इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है।

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