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Friday, 6 November 2015

♥ ध्रुव ♥

मनु शतरूपा के एक पुत्र उत्तानपाद हुए । राजा उत्तानपाद की सुरुचि और सुनीति नाम की दो रानियां थीं । सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था । सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था । राजा उत्तानपाद रानी सुरुचि को बहुत चाहते थे । राजा उत्तानपाद रानी सुरुचि को घर के अंदर रखते और रानी सुनीति को घर के बाहर रखते थे । एक बार राजा और रानी सुरुचि राज दरबार में बैठे थे और राज कुमार उत्तम राजा की गोदी में बैठे थे ।

इतने में राजकुमार ध्रुव कहीं से खेलते हुए आए और राजा की गोदी में बैठने गए । इस बात पर रानी सुरुचि बहुत नाराज हो गयीं और ध्रुव जी का हैथ पकड़ कर गोदी से नीचे उतार कर बोलीं कि तुम अगर राजा की गोद पर बैठना चाहते हो तो तुम्हें मेरे कोख से जन्म लेना पड़ेगा । बालक ध्रुव रोते हुए अपनी मां के पास गए और उन्हें सब बात बताई । सुनीति ने प्रार्थना करो । ध्रुव जी घर से मां के कथनानुसार जंगल में तपस्या करने चले गए । नारद जी ने ध्रुव जी को भगवत् प्राप्ति का मार्ग बताया । बहुत समय तक तपस्या करने के बाद ध्रुव जी को भगवान के दर्शन हुए और एक अटल पद (ध्रुवतारा) की प्राप्ति हुई ।

इस प्रकरण में राजा उत्तानपाद जीवात्मा का रूप हैं जिनका शाखाएं जमीन के नीचे और मस्तिष्क ऊपर की तरफ होता है । सुरुचि = प्रिय (स्वरूचि) मन के अनुरुप, विषयासक्ति व अविवेक जो अपनी रुचि के अनुसार बात करें । प्रत्येक व्यक्ति सुरुचि को अपने साथ यानी कि घर के अंदर रखता है ।
सुनीति = श्रेय, जीवन का कल्याण, सुंदर नीति । हर व्यक्ति नीति की बात दूसरों को शिक्षा देने के लिए ही करता है ।
"पर उपदेश कुशल बहुतेरे" ।

इसलिए राजा भी सुनीति को घर के बाहर रखते थे । नीति के मार्ग पर चलकर ही अटल सत्य (ध्रुव) की प्राप्ति होती है । सुनीति की सुंदर शिक्षा के कारण ध्रुव जी भगवान के साक्षात् दर्शन कर पाए । जननी वहीं है जो अपने पुत्र को भगवान के प्रेम की ओर मोड़ दे (न कि अपनी ममता की ओर मोड़े) सुनीति जननी है । मानस में सुमित्रा जननी हुई । अपनी ममता के बंधन को तोड़कर प्रभु से प्रेम करा दे, वहीं जननी है । "भक्ति संस्कारान् जनयति सा जननी" । यदि संतान पैदा करने मात्र से मां को जननी कहा जाता तो गाय और बकरी भी जननी कहलाती । जीवन सहज एवं स्वाभाविक होना चाहिए । बनाने और सजाने मात्र से प्रभु नहीं मिलते ।

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