बैसाखी का आगमन प्रकृति के परिवर्तन को दर्शाता है। बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है l विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं l कुल मिलाकर, वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है l इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है l
बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है l यह घटना हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होती है l
बैसाखी का यह खूबसूरत पर्व अलग अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। केरल में यह त्योहार 'विशु' कहलाता है। बंगाल में इसे नब बर्षा, असम में इसे रोंगाली बीहू, तमिलनाडु में पुथंडू और बिहार में इसे वैषाख के नाम से जाना जाता है। बैसाखी का पर्व पंजाब के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
बैसाखी का संबंध फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन गेहूं की पक्की फसल को काटने की शुरूआत होती है। किसान इसलिए खुश हैं कि अब फसल की रखवाली करने की चिंता समाप्त हो गई है। इस दिन किसान सुबह उठकर नहा धोकर मंदिरों और गुरुदृारे में जाकर भगवान को अच्छी फसल होने का धन्यवाद देते हैं। इस पर्व पर पंजाब के लोग अपने रीति रिवाज के अनुसार भांगड़ा करते हैं।
बैसाखी के ही दिन 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
बैसाखी का पर्व जब आता है उस समय सर्दियों की समाप्ति और गर्मियों का आरंभ होता है। इसी के आधार स्वरूप लोक परंपरा धर्म और प्रकृति के परिवर्तन से जुड़ा यह समय बैसाखी पर्व की महत्ता को दर्शता है।
★ SOURCE ★
- SANSKAR -
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