नर्मदा नदी को जीवन दायिनी कहा जाता है, यह न केवल एक नदी है बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र भी है।
इससे जुड़ी कई रोचक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है।
राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी। राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ संपन्न करेंगे। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए इससे उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ।
नर्मदा अब तक सोनभद्र के दर्शन न कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी। विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा ना गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची।
जुहिला ने राजकुमारी से उसके वस्त्राभूषण मांगे और चल पड़ी राजकुमार से मिलने। सोनभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर बैठे। जुहिला की नीयत में भी खोट आ गयी।
राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा ना सकी।
इधर जब नर्मदा के सब्र का बांध टूटने लगा। दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी सोनभद्र से मिलने। वहां पहुंचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण आग में जल उठीं। तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी फिर कभी न लौटने के लिए। सोनभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा, लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई। नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया।
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