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Friday 27 January 2017

♥ राजा ययाति की जवानी ♥



महाभारत में यह घटना राजा ययाति के जीवन से संबंधित है। जिन्हें शुक्राचार्य ने एक ऐसा श्राप दिया जिसकी वजह से उन्होंने अपनी जवानी ही खो दी थी।

असुर गुरु शुक्राचार्य मृतसंजीवनी, ऐसी दवा जो मृत इंसान को भी जीवित कर सकती है, के रहस्य को जानते थे, इसलिए वृशपर्व उनका बहुत सम्मान करते थे। शुक्राचार्य की एकमात्र संतान देवयानी थी। वह इतनी जिद्दी और घमंडी हो गई थी कि वह किसी को अपने सामने कुछ नहीं समझती थी।


एक दिन राजा वृशपर्व की पुत्री शर्मिष्ठा, शुक्राचार्य के पास उनकी पुत्री को स्नान के लिए झील ले जाने की अनुमति मांगने आई। शुक्राचार्य ने शर्मिष्ठा की बात मानकर अपनी पुत्री देवयानी को झील पर स्नान करने भेज दिया। सभी कन्याएं झील में नहा रही थीं कि अचानक बहुत बड़ा तूफान आया जिसकी वजह से सभी के कपड़े इधर-उधर फैल गए और गलती से शर्मिष्ठा ने देवयानी के कपड़े डाल लिए। शर्मिष्ठा को अपने वस्त्रों में देखकर देवयानी आगबबूला हो उठी और शर्मिष्ठा को भला-बुरा कहने लगी। दोनों के बीच कहासुनी बढ़ती गई और गुस्से में आकर शर्मिष्ठा ने देवयानी को एक सूखे कुएं में धक्का दे दिया। इसी दौरान पड़ोस के राजा ययाति अपने घोड़े पर वहां से गुजरे और देवयानी की आवाज सुनकर रुक गए। उन्होंने देवयानी का हाथ पकड़ कर कुएं से बाहर निकाला। हाथ पकड़ लेने की वजह से देवयानी ने राजा ययाति पर स्वयं के साथ विवाह करने का दबाव डाला। राजा ययाति ने यह कहकर विवाह का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि वह एक क्षत्रिय है और किसी ब्राह्मण युवती से विवाह नहीं कर सकता। राजा ययाति वहां से चले गए और उनके जाने के बाद देवयानी घर ना जाकर पेड़ के किनारे बैठी रही। जब काफी समय तक देवयानी अपने घर नहीं पहुंची तब शुक्राचार्य उसकी तलाश में निकल पड़े। जब वह उस कुएं के किनारे पहुंचे तब अपनी पुत्री को वहां बैठे देख वह बेहद आश्चर्यचकित रह गए। अपनी गलती छुपाते हुए देवयानी ने अपने साथ हुई घटना बताई शुक्राचार्य ने यह बात राजा वृशपर्व को बताई और उन्हें कहा कि अगर शर्मिष्ठा उनकी पुत्री से माफी नहीं मांगेगी तो वह इस नगर को छोड़कर चले जाएंगे। राजा वृशपर्व किसी भी रूप में उन्हें जाने नहीं दे सकते थे इसलिए अपने पिता के लिए शर्मिष्ठा ने देवयानी से माफी मांग ली। देवयानी का मन इतने से नहीं भरा और उसने शर्मिष्ठा से कहा उसे आजीवन उसकी दासी बनकर रहना होगा। शर्मिष्ठा जानती थी कि देवयानी हर समय उसका अपमान करेगी लेकिन फिर भी उसने यह शर्त स्वीकार ली।

एक दिन राजा ययाति दोबारा उसी मार्ग से गुजरे और दोबारा उनकी मुलाकात देवयानी से हुई। देवयानी ने शर्मिष्ठा को अपनी नौकरानी के रूप में राजा से मिलवाया और कहा कि ययाति को उससे विवाह कर लेना चाहिए। राजा ने देवयानी की बात मानकर उससे विवाह कर लिया। इन दोनों के दो पुत्र हुए। लेकिन एक दिन अचानक राजा ययाति और शर्मिष्ठा का आमना-सामना हुआ तब शर्मिष्ठा ने उन्हें देवयानी की हकीकत बताई। ययाति को देवयानी पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने शर्मिष्ठा के हालातों को समझते हुए उसे अपनी दूसरी पत्नी स्वीकार किया। राजा ययाति और शर्मिष्ठा के विवाह को काफी समय हो गया और तीन पुत्रों की उत्पत्ति के बाद शर्मिष्ठा और ययाति के विवाह की हकीकत देवयानी को पता चली।

देवयानी अत्याधिक क्रोधित अवस्था में अपने पिता शुक्राचार्य के पास पहुंची और उन्हें सारा हाल बताया। शुक्राचार्य ने क्रोधावेग में ययाति को श्राप देकर उसकी जवानी छीन ली। ययाति उनके सामने गिड़गिड़ाए और माफी मांगी। उनकी हालत देखकर शुक्राचार्य और देवयानी को उन पर तरस आ गया। शुक्राचार्य ने कहा कि ‘मैं दिया गया श्राप वापस तो नहीं ले सकता लेकिन अगर तुम्हारा कोई पुत्र तुम्हें अपनी जवानी देता है तो तुम जब तक चाहो तब तक जवान रह सकते हो’।

वृद्ध ययाति अपने महल पहुंचा और सबसे पहले अपने बड़े पुत्र से कहा कि वह उसे अपनी जवानी दे दे। उसके सभी बेटों ने उसका आग्रह टाल दिया लेकिन सबसे छोटा पुत्र पुरु इस बात के लिए राजी हो गया। पुरु ने अपने पिता ययाति को अपनी जवानी दे दी और स्वयं वृद्ध हो गया।

ययाति ने अपनी जवानी का भरपूर आनंद उठाया लेकिन एक दिन उसे अपनी गलती और पुत्र के प्रति किए गए अन्याय का अहसास हुआ। ययाति आत्मग्लानि में अपने पुत्र के पास पहुंचा और उसे कहा कि वह अब और ज्यादा जवान नहीं रहना चाहता। ययाति ने पुरु को उसकी जवानी वापस की और उसे राजपाठ सौंपते हुए कहा वह संयमित और सही तरीके से शासन की बागडोर संभाले।

अपनी पारिवारिक और राजकीय जिम्मेदारियों से मुक्त होकर ब्रह्म की उपासना करने के लिए सम्राट ययाति जंगल की ओर प्रस्थान कर गया और अपना संपूर्ण जीवन वहीं बिताया।

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