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Sunday, 12 June 2016

♥ जानिए, क्यों हनुमानजी ने धारण किया था 'पंचमुखी' का रूप ♥

जब भगवान श्रीराम और रावण का युद्ध चल रहा था तभी एक ऐसा समय आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण का स्मरण करना पड़ा। कहा जाता है कि रावण तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का भक्त था। अपने भाई रावण के संकट को दूर करने का उसने एक उपाय निकाला। उसने कहा- 'यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। तब अहिरावण ने ऐसी माया रची कि सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई और वह श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल लोक ले गया।


जागने पर जब इस संकट का पता चला तो रावण के अनुज विभीषण ने यह रहस्य खोला कि ऐसा दुःसाहस केवल अहिरावण ही कर सकता है। इस विपदा के समय में सभी ने संकट मोचन हनुमानजी का स्मरण किया।


हनुमान जी तुरंत पाताल लोक पहुंचे और द्वार पर रक्षक के रूप में तैनात मकरध्वज से युद्ध कर उसे हरा दिया। जब हनुमानजी पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम और लक्ष्मण जी को बंधक अवस्था में थे। अपने प्रभु का यह हाल देख कर बहुत दुःखी हुए।


तभी उन्होंने देखा कि वहां चार दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी। अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा।


इस रहस्य पता चलते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।


इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया। इस तरह हनुमानजी ने भगवान श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण को अहिरावण के यहां मुक्त किया।


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