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Tuesday, 20 October 2015

♥ महिषासुरमर्दिनी / माँ अंबे / माँ दूर्गा की कैसे हुईं उत्पत्ति ? ♥




पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ वर्षों तक घोर संग्राम हुआ था । उसमें असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं के नायक इंद्र थे । उस युद्ध में देवताओं की सेना महाबली असुरों से परास्त हो गयी । सम्पूर्ण देवताओं को जीतकर महिषासुर इंद्र बन बैठा । तब पराजित देवता प्रजापति ब्रह्माजी को आगे करके उस स्थान पर गए ,जहां भगवान शंकर और विष्णु विराजमान थे । देवताओं ने महिषासुर के पराक्रम तथा अपनी पराजय का यथावत वृतांत उन दोनों देवेश्वरों से विस्तारपूर्वक कह सुनाया । वे बोले - भगवन ! महिषासुर सूर्य ,इंद्र , अग्नि , वायू, चंद्रमा, यम, वरूण तथा अन्य देवताओं के अधिकार छीनकर स्वयं ही सबका अधिष्ठाता बना बैठा है । उस दुरात्मा महिष ने समस्त देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया है । अब वे मनुष्यों की भांति पृथ्वी पर विचरते हैं । दैत्यों की यह सारी करतूत हमने आप लोगों से कह सुनायी । अब हम आपकी ही शरण में आए हैं । उसके वध का कोई उपाय सोचिए ।

इस प्रकार देवताओं के वचन को सुनकर भगवान विष्णु और शिव को दैत्यों पर बड़ा क्रोध किया । उनकी भौंहे तन गयीं और मुंह टेढ़ा हो गया ।

तब अत्यंत कोप में भरे हुए चक्रपाणि श्री विष्णु के मुख से एक महान तेज प्रकट हुआ । इसी प्रकार ब्रह्मा,शंकर तथा इंद्र आदि देवताओं के शरीर से भी बड़ा भारी तेज निकला । वह सब मिलकर एक हो गया । देवताओं ने देखा वहां उसकी ज्वालाएं सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हो रही थी । सम्पूर्ण देवताओं के शरीर से प्रकट हुए उस तेज की कहीं तुलना नहीं थी । एकत्रित होने पर वह एक नारी के रूप में परिणत हो गया और अपने प्रकाश से तीनों लोकों में व्याप्त जान पड़ा ।

♦ भगवान शंकर का जो तेज था उससे उस देवी का मुख प्रकट हुआ ।

♦ यमराज के तेज से उसके सिर में बाल निकल आए । श्रीविष्णु भगवान के तेज से उसकी भुजाएं उत्पन्न हुईं ।

♦ चंद्रमा के तेज से स्तनों का और इंद्र के तेज से मध्यभाग (कटिप्रदेश) का प्रादुर्भाव हुआ ।

♦ वरुण के तेज से जंघा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज से नितंबभाग प्रकट हुआ ।

♦ ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उनकी अंगुलियां हुईं ।

♦ वसुओं के तेज से हाथों की अंगुलियां और कुबेर के तेज से नासिका प्रकट हुईं ।

♦ उसकी भौंहे संध्या के और कान वायु के तेज से उत्पन्न हुए थे । इसी प्रकार देवताओं के तेज से भी उस कल्याणकारी देवी का आविर्भाव हुआ ।


≈≈≈ ♥ अब अगली कड़ी में आपको बताएंगे की देवताओं ने कैसे किया मां शक्ति को अस्त्र-शस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित । ♥ ≈≈≈


♦ समस्त देवताओं के तेज पुंज से प्रकट हुई देवी को देखकर महिषासुर के सताये हुए देवता बहुत प्रसन्न हुए । भगवान शंकर ने अपने शूल से एक शूल निकालकर उन्हें दिया, फिर भगवान विष्णु ने भी अपने चक्र से चक्र उल्पन्न करके भगवती को अर्पण किया ।

♦ वरूण ने भी शंख भेंट किया, अग्नि ने उन्हें शक्ति दी और वायु ने धनुष तथा बाण से भरे हुए दो तरकस प्रदान किए ।

♦ सहस्त्र नेत्रों वाले देवराज इंद्र ने अपने वज्र से वज्र उत्पन्न करके दिया और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा भी प्रदान किया ।

♦ यमराज ने काल दंड से दंड,वरूण ने पाश, प्रजापति ने स्फटिकाक्षकी माला तथा ब्रह्माजी ने कमंडलु भेंट किया ।

♦ सूर्य ने देवी के समस्त रोम-कूपों में अपनी किरणों का तेज भर दिया ।

♦ काल ने उन्हें चमकती हुई ढाल और तलवार दी ।

♦ क्षीर समुद्र ने उज्जवल हार तथा कभी जीर्ण न होनेवाले दो दिव्य वस्त्र भेंट किए । साथ ही उन्होंने दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, उज्जवल अर्धचंद्र, सव बाहुओं के लिए केयूर, दोनों चरणों ते लिए निर्मल नूपुर, गले की सुंदर हंसली और सब उंगलियों में पहनने के लिए रत्नों की बनी अंगूठियां भी दीं ।

♦ विश्वकर्मा ने उन्हें अत्यंत निर्मल फरसा भेंट किया । साथ ही अनेक प्रकार के अस्त्र और कवच दिए, इनके सिवा मस्तक और वक्ष:सथलपर धारण करने के लिए कभी न कुम्हलाने वाले कमलों की मालाएं दीं ।

♦ जलधि ने उन्हें सुंदर कमल का फूल भेंट किया ।

♦ हिमालय ने सवारी के लिए सिंह तथा भांति-भांति के रत्न समर्पित किए ।

♦ धनाध्यक्ष कुबेर ने मधुसे भरा पानपात्र दिया तथा सम्पूर्ण नागों के राजा शेष ने, जो इस पृथ्वी को धारण करते हैं,उन्हें बहुमूल्य मणियों से विभूषित नागहार भेंट दिया ।

♦ इसी प्रकार अन्य देवताओं ने भी आभूषण और अस्त्र-शस्त्र देकर देवीका सम्मान किया ।

→ तत्पश्चात उन्होंने बारंबार अट्टाहासपूर्वक उच्चस्वर से गर्जना की । उनके भयंकर नाद से सम्पूर्ण आकाश गूंज उठा । देवी का वह अत्यंत उच्चस्वर से किया हुआ सिंहनाद कहीं समा न सका,आकाश उसके सामने लघु प्रतीत होने लगा । उससे बड़े जोर की प्रतिध्वनि हुई, जिससे सम्पूर्ण विश्व में हलचल मच गई और समुद्र कांप उठे । पृथ्वी डोलने लगी और समस्त पर्वत हिलने लगे । उस समय देवताओं ने अत्यंत प्रसन्नता के साथ सिंहवाहिनी भवानी से कहा - देवी ! तुम्हारी जय हो । साथ ही महर्षियों ने भक्ति भाव से विनम्र होकर स्तवन किया ।

★ सम्पूर्ण त्रिलोकी को क्षोभग्रस्त देख दैत्यगण अपनी समस्त सेना को कवच आदि से सुसज्जित कर, हाथों में हथियार ले सहसा उठकर खड़े हो गए । देवी अपने विशाल रूप में दैत्यों पर प्रहार करने लगीं और अस्त्र-शस्त्रों की निरंतर वर्षा असुरों पर शूरू कर दी...इस तरह से देवी और असुरों का युद्ध लगातार नौ दिनों तक चलता रहा । इस युद्ध में लाखों की तादाद में दैत्यों को देवी ने मार गिराया....ऋषि-मुनियों और देवगण देवी की उपासना करते है और अंत में देवी के हाथों दैत्य महिष को मृत्यु प्राप्त हुईं ।

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