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Friday 8 September 2017

♥ घड़ी की सुइयां उल्टी दिशा में इसलिए घूमती हैं, ये है अनोखा राज! ♥

⏰   समय किसी के लिए नहीं रुकता, ये बात सभी को पता है। सभी लोग हर काम समय के हिसाब से ही करते हैं। सभी लोग घड़ी भी देखते हैं, पर शायद ही किसो को पता हो कि घड़ी एक ही तरफ क्यों घूमती है? आखिर घड़ी की सुईयों के पश्चिम से पूरब की घूमने का राज क्या है? अगर नहीं जानते, तो आगे की स्लाइड्स में जानें कि आखिर क्यों घड़ी की सुईयां पश्चिम से पूरब की ओर घूमती हैं...

⏰   समय की पहचान तो अब से हुई नहीं है। प्राचीन काल में भी प्रहर के हिसाब से भारतभूमि में समय का पता लगता था। प्राचीन भारत में या कहें कि अब भी दिन को 8 प्रहर में गिनते हैं। दिन-रात मिलाकर 24 घंटे में हिंदू धर्म अनुसार आठ प्रहर होते हैं। औसतन एक प्रहर तीन घंटे का होता है जिसमें दो मुहूर्त होते हैं।

⏰    एक प्रहर तीन घंटे या साढ़े सात घटी का होता है। एक घटी 24 मिनट की होती है। दिन के चार और रात के चार मिलाकर कुल आठ प्रहर। ये समय सूर्य की रोशनी और चांद की चाल पर निर्धारित था। आज भी उजले और अंधेरे पक्ष(पाख) के बारे में हम सभी जानते हैं। समय की ये गणना तो भारतीय हुई, जिसमें हमें किसी घड़ी की जरूरत ही नहीं थी। और फिर जब जरूरत पड़ी भी तो हमारे यहां सौर घड़ी आ गई।

⏰    सौर घड़ी के अलावा हमारे यहां चंद्रमा की चाल के हिसाब से भी समय देखा गया। अगर उजाले पक्ष की चौथ है, तो सूर्य ग्रहण के बाद चौथे घंटे में चांद दिखता था। अष्टमी है तो पूरे 8 घंटे बाद। और एक बात, घंटों की गणना भी भारत की ही देन है, इसीलिए चंद्र पंचांगों की गणना सौर पंचांग से सटीक मानी जाती थी। खैर, सौर-चंद्र के बाद हम घड़ियों की दिशा की बात करते हैं, जिन्हें आगे की स्लाइड्स में विस्तार से समझाया गया है।

⏰    वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राचीन समय में लोगों ने उत्तरी गोलार्ध में रहते हुए समय का अंदाजा लगाना शुरु किया था इसीलिए यह सारा सिस्टम क्लॉक वाइस बना। अगर वह लोग दक्षिणी गोलार्ध में रहते तो शायद यह चीज कुछ और होती और यही कारण है कि घड़ी की सुइयां भी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है।

⏰    बहरहाल, भारत देश में ज्योतिष का स्तर और समयानुमान काफी सटीकता से लगाया जाता था। इसकी वजह भारत की जलवायु भी है। भारत में मौसम समान समय में बदल जाते हैं। एक अंदाजे के मुताबिक तय समय पर सूर्य उत्तरायण और दक्षिणायन में कूच करता है तो भारत में मौसम की जानकारी मिलती जाती थी। फिर हमारे सहस्त्राब्दियों पुराने ग्रंथों में भी सूर्य की गति और दिशाओं में परिवर्तन की जानकारियां दी ही गई हैं, भीष्म की प्रतिज्ञा के बारे में तो पता ही होगा। ऐसे में शायद हमें यूरोपीय लोगों की तरह घड़ियों की जरूरत ही नहीं पड़ी कि हम एक एक सेकंड घड़ी की सुइयों पर काटे।

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