वास्तु शास्त्र के अनुसार, रात को सोते समय सिरहाने की दिशा से भी स्वास्थ्य प्रभावित होता है। प्राचीन परंपराओं में भी कहा गया है कि सिरहाना सदैव पूर्व या दक्षिण की ओर करना चाहिए। इसका क्या कारण है?
वास्तव में इसके पीछे प्रकृति की ऊर्जा का सिद्धांत है। पूर्व दिशा को सूर्यदेव के उदय का मार्ग कहा जाता है जो स्वयं शक्ति और जीवन के प्रतीक माने जाते हैं।
दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने पर लोग कहते हैं कि इससे बुरे सपने आते हैं। इसलिए उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना चाहिए। इसका वैज्ञानिक तर्क ये है कि जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन या दिमाग से संबंधी कोई बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। रक्तचाप भी बढ़ जाता है। इस कारण दक्षिण दिशा में सिर करके सोने की परंपरा बनाई गई है।
दरअसल, पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति होती है. इसमें दक्षिण से उत्तर की ओर लगातार चुंबकीय धारा प्रवाहित होती रहती है l जब हम दक्षिण की ओर सिर करके सोते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे सिर ओर से प्रवेश करती है और पैरों की ओर से बाहर निकल जाती है l ऐसे में सुबह जगने पर लोगों को ताजगी और स्फूर्ति महसूस होती है I
वास्तव में इसके पीछे प्रकृति की ऊर्जा का सिद्धांत है। पूर्व दिशा को सूर्यदेव के उदय का मार्ग कहा जाता है जो स्वयं शक्ति और जीवन के प्रतीक माने जाते हैं।
दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने पर लोग कहते हैं कि इससे बुरे सपने आते हैं। इसलिए उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना चाहिए। इसका वैज्ञानिक तर्क ये है कि जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन या दिमाग से संबंधी कोई बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। रक्तचाप भी बढ़ जाता है। इस कारण दक्षिण दिशा में सिर करके सोने की परंपरा बनाई गई है।
दरअसल, पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति होती है. इसमें दक्षिण से उत्तर की ओर लगातार चुंबकीय धारा प्रवाहित होती रहती है l जब हम दक्षिण की ओर सिर करके सोते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे सिर ओर से प्रवेश करती है और पैरों की ओर से बाहर निकल जाती है l ऐसे में सुबह जगने पर लोगों को ताजगी और स्फूर्ति महसूस होती है I
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