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Saturday, 18 June 2016

♥ जानिए चोटी रखने का महत्व ♥


🏽चोटी ( शिखा )

वैदिक धर्म में सिर पर शिखा

शिखा धारण करने का असाधारण महत्व है।प्रत्येक बालक के जन्म के बाद मुण्डन संस्कार के पश्चात सिर के उस विषेश भाग पर गौ के नवजात बच्चे के खुर के प्रमाण आकार की चोटी रखने का विधान है।

यह वही स्थान होता है जहाँ सुषुम्ना नाड़ी पीठ के मध्य भाग में से होती हुई ऊपर की और आकर समाप्त होती है और उसमें से सिर के विभिन्न अंगों के वात संस्थान का संचालन करने को अनेक सूक्ष्म वात नाड़ियों का प्रारम्भ होता है।_

सुषुम्ना नाड़ी सम्पूर्ण शरीर के वात संस्थान का संचालन करती है* ।

यदि इसमें से निकलने वाली कोई नाड़ी किसी भी कारण से सुस्त पड़ जाती है तो उस अंग को फालिज मारना कहते हैं।समस्त शरीर को शक्ति केवल सुषुम्ना नाड़ी से ही मिलती है।_

सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है उसी स्थान पर अस्थि के नीचे लघुमस्तिष्क का स्थान होता है जो गौ के नवजात बच्चों के खुर के ही आकार का होता है और शिखा भी उतनी ही बड़ी उसके ऊपर रखी जाती है।

बाल गर्मी पैदा करते हैं।बालों में विद्युत का संग्रह रहता है जो सुषुम्ना नाड़ी को उतनी ऊष्मा हर समय प्रदान करते रहते हैं जितनी की उसे समस्त शरीर के वात-नाड़ी संस्थान को जागृत व उत्तेजित करने के लिए आवश्यकता होती है।

इससे मानव का वात नाड़ी संस्थान आवश्यकतानुसार जागृत रहते हुए समस्त शरीर को बल देता है। किसी भी अंग में फालिज पड़ने का भय नहीं रहता है और साथ ही लघुमस्तिष्क विकसित होता रहता है,जिसमें जन्म जन्मान्तरों के एवं वर्तमान जन्म के संस्कार संग्रहीत रहते हैं।

सुषुम्ना का जो भाग लघुमस्तिष्क को संचालित करता है,वह उसे शिखा द्वारा प्राप्त ऊष्मा से चैतन्य बनाता है,इससे स्मरण शक्ति भी विकसित होती है।


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