- Pratima Jaiswal
- Source :- Dainik Jagran

महाभारत को महाकाव्य के रूप में जाना जाता है. इसके विभिन्न चरित्रों से हमें कोई न कोई सीख जरूर मिलती है. महाभारत के ऐसे ही एक चरित्र के बारे में लोगों को सबसे कम जानकारी है. वो चरित्र है ‘धृष्टद्युम्न’. द्रौपदी का भाई धृष्टद्युम्न भी अन्य पात्रों की तरह ही महाभारत का मुख्य पात्र है. जिसके द्वारा गुरू द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई थी. धृष्टद्युम्न के जन्म से एक दिलचस्प कहानी जुड़ी है. महात्मा याज ने जब राजा द्रुपद का यज्ञ करवाया तो यज्ञ के अग्निकुण्ड में से एक दिव्य कुमार प्रकट हुआ. उसके सिर पर मुकुट, शरीर पर कवच तथा हाथों में धनुष-बाण थे. यह देख सभी पांचालवासी हर्षित हो गए l

तभी आकाशवाणी हुई कि इस पुत्र के जन्म से द्रुपद का सारा शोक मिट जाएगा. यह कुमार द्रोणाचार्य को मारने के लिए ही पैदा हुआ है. ब्राह्मणों ने इस बालक का नामकरण करते हुए कहा कि यह कुमार बड़ा धृष्ट(ढीट) और असहिष्णु है. इसकी उत्पत्ति अग्निकुंड की द्युति से हुई है, इसलिए इसका धृष्टद्युम्न होगा. ऐसा भी माना जाता है कि धृष्टद्युम्न पिछले जन्म में एकलव्य था. जिसने गुरू द्रोण के कहने पर अपना अंगूठा काटकर उन्हें अर्पण कर दिया था. जिसके कुछ सालों बाद एकलव्य की मृत्यु हो गई थी. महाभारत में केवल इस प्रसंग में ही एकलव्य का उल्लेख मिलता है.
गुरू द्रोण के इस छल के कारण ही उनका वध करने के लिए पाडंवों ने छल का सहारा लिया था. क्योंकि मनुष्य भूतकाल में किए हुए कर्मों को भूल सकता है लेकिन प्रकृति में निरंतर चलने वाला चक्र ‘कर्म’ सभी के कार्यों अनुसार ही फल देता है. द्रोण का यही पाप उनकी मृत्यु का कारण बना. कुरुक्षेत्र के युद्ध में धृष्टद्युम्न ने अपने पूर्वजन्म का प्रतिशोध लेते हुए गुरू द्रोण की जीवन लीला समाप्त कर दी थी l
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महाभारत को महाकाव्य के रूप में जाना जाता है. इसके विभिन्न चरित्रों से हमें कोई न कोई सीख जरूर मिलती है. महाभारत के ऐसे ही एक चरित्र के बारे में लोगों को सबसे कम जानकारी है. वो चरित्र है ‘धृष्टद्युम्न’. द्रौपदी का भाई धृष्टद्युम्न भी अन्य पात्रों की तरह ही महाभारत का मुख्य पात्र है. जिसके द्वारा गुरू द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई थी. धृष्टद्युम्न के जन्म से एक दिलचस्प कहानी जुड़ी है. महात्मा याज ने जब राजा द्रुपद का यज्ञ करवाया तो यज्ञ के अग्निकुण्ड में से एक दिव्य कुमार प्रकट हुआ. उसके सिर पर मुकुट, शरीर पर कवच तथा हाथों में धनुष-बाण थे. यह देख सभी पांचालवासी हर्षित हो गए l

तभी आकाशवाणी हुई कि इस पुत्र के जन्म से द्रुपद का सारा शोक मिट जाएगा. यह कुमार द्रोणाचार्य को मारने के लिए ही पैदा हुआ है. ब्राह्मणों ने इस बालक का नामकरण करते हुए कहा कि यह कुमार बड़ा धृष्ट(ढीट) और असहिष्णु है. इसकी उत्पत्ति अग्निकुंड की द्युति से हुई है, इसलिए इसका धृष्टद्युम्न होगा. ऐसा भी माना जाता है कि धृष्टद्युम्न पिछले जन्म में एकलव्य था. जिसने गुरू द्रोण के कहने पर अपना अंगूठा काटकर उन्हें अर्पण कर दिया था. जिसके कुछ सालों बाद एकलव्य की मृत्यु हो गई थी. महाभारत में केवल इस प्रसंग में ही एकलव्य का उल्लेख मिलता है.
गुरू द्रोण के इस छल के कारण ही उनका वध करने के लिए पाडंवों ने छल का सहारा लिया था. क्योंकि मनुष्य भूतकाल में किए हुए कर्मों को भूल सकता है लेकिन प्रकृति में निरंतर चलने वाला चक्र ‘कर्म’ सभी के कार्यों अनुसार ही फल देता है. द्रोण का यही पाप उनकी मृत्यु का कारण बना. कुरुक्षेत्र के युद्ध में धृष्टद्युम्न ने अपने पूर्वजन्म का प्रतिशोध लेते हुए गुरू द्रोण की जीवन लीला समाप्त कर दी थी l
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