→ श्रीमद् भागवत पुराण कथा = श्रीमद् + भागवत + पुराण + कथा (चार शब्दों से बना है) इसलिए चारों शब्दों को एक - एक करके निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है -
→ 'श्रीमद' शब्द भागवत का राज तिलक है । श्रीमद् शब्द संस्कृत वाङ्मय के केवल दो ही ग्रंथ के आगे प्रयोग होता हैं -
1. श्रीमद् भगवत गीता
2. श्रीमद् भागवत महापुराण
→ भागवत पुराणों का सम्राट है तो गीता स्मृतियों की साम्राज्ञी है ।
→ 'भागवत' = भा +ग + व + त = चार शब्दों से मिल कर बना है ।
→ भागवत का आध्यात्मिक अर्थ - भा यानी भक्ति, ग यानी ज्ञान, व मतलब वैराग्य और त से तत्व है । जब जीवन में भक्ति का शुभारम्भ होता है तो ज्ञान पैदा होता है और ज्ञान के होने पर वैराग्य की उत्पत्ति होती है और वैराग्य दृढ़ होने पर शनै: - शनै: तत्व (परमात्मा) की प्राप्ति हो जाती है ।
→ भागवत का भौतिक अर्थ - भा यानी भानु (सूर्य) या रोशनी का सूत्र, ग यानी गति (निरंतरता) व मतलब विवेचन (अध्ययन) एवं त से तत्व (ईश्वर) है । जब मानव के जीवन में प्रकाश होता है तभी वह क्रियात्मक स्थिति में आता है और जीवन के लक्ष्य - अलक्ष्य का विवेचन करके ही मानव तत्व यानी ईश्वर की प्राप्ति कर पाता है ।
→ व्याकरण की दृष्टि से पुराण का अर्थ होता है पुराना । परंतु पुराण अति प्राचीन होते हुए बी वर्तमान समस्याओं का समाधान करके सही दिशा निर्देश प्रदान करते हैं ।
••• ♥ पुराण ♥ •••
पूर्ण केवल एक ईश्वर ही है । पुराणों में केवल श्रीमद् भागवत पुराण ही ऐसा पुराण है जो मानव - जीवन के प्रत्येक पक्ष के लिए अपने आप में परिपूर्ण है ।
•••♥ कथा ♥•••
श्रीमद् भागवत जी की कथा देव दुर्लभ है । यह स्वर्ग में देवताओं को भी नहीं मिलती । यह कथा केवल पृथ्वी पर ही उपलब्ध है । इसलिए श्रीहनुमाान जी
ने स्वर्ग जाने से मना कर दिया था और वे साक्षात रूप से कथा सुनने पृथ्वी पर पधारते हैं । स्वर्ग में सुधा है परंतु कथा सुधा तो वसुधा पर ही है । —
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