આ બ્લોગમાં વર્તમાનપત્રો, મેગેઝિનો, વિકીપીડીયા,GK ની વેબસાઇટો, વગેરે માધ્યમોનો સંદર્ભ તરીકે ઉપયોગ કરવામા આવેલ છે જે માટે સૌનો હ્રદયપૂર્વક આભાર વ્યક્ત કરુ છુ.બ્લોગથી મને લેશમાત્ર આવક નથી.જેની નોંધ લેશો.

Saturday, 27 September 2014

♥ संसदभवन ♥

|~ निर्माण ~|

भवन का शिलान्यास 12 फरवरी 1921 को ड्यूक आफ कनाट ने किया था। इस महती काम को अंजाम देने में छह वर्षो का लंबा समय लगा। इसका उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था। संपूर्ण भवन के निर्माण कार्य में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई।

|~ आकार ~|

गोलाकार आवृत्ति में निर्मित संसद भवन का व्यास 170.69 मीटर का है तथा इसकी परिधि आधा किलोमीटर से अधिक (536.33 मीटर) है जो करीब छह एकड़ (24281.16 वर्ग मीटर)भू-भाग पर
स्थित है। दो अर्धवृत्ताकार भवन केंद्रीय हाल को खूबसूरत गुंबदों से घेरे हुए हैं। भवन के पहले तल का गलियारा 144 मजबूत खंभों पर टिका है। प्रत्येक खंभे की लम्बाई 27 फीट (8.23 मीटर) है। बाहरी दीवार ज्यामितीय ढंग से बनी है तथा इसके बीच
में मुगलकालीन जालियां लगी हैं। भवन करीब छह एकड़ में फैला है तथा इसमें 12 द्वार हैं जिसमें गेट नम्बर 1 मुख्य द्वार है।

|~ स्थापत्य ~|

संसद का स्थापत्य नमूना अद्भुत है। मशहूर वास्तुविद लुटियंस ने भवन का डिजाइन तैयार किया था। सर हर्बर्ट बेकर के निरीक्षण में निर्माण कार्य संपन्न हुआ था। खंबों तथा गोलाकार बरामदों से निर्मित यह
पुर्तगाली स्थापत्यकला का अदभुत नमूना पेश करता है। गोलाकार गलियारों के कारण इसको शुरू में सर्कलुर हाउस कहा जाता था। संसद भवन के
निर्माण में भारतीय शैली के स्पष्ट दर्शन मिलते हैं। प्राचीन भारतीय स्मारकों की तरह दीवारों तथा खिड़कियों पर छज्जों का इस्तेमाल किया गया है।

|~ संस्था ~|

संसद भवन देश की सर्वोच्च विधि निर्मात्री संस्था है। इसके प्रमुख रूप से तीन भाग हैं- लोकसभा,राज्यसभा और केंद्रीय हाल।

|~ लोकसभा कक्ष ~|

लोकसभा कक्ष अर्धवृत्ताकार है। यह करीब 4800 वर्ग फीट में स्थित है। इसके व्यास के मध्य में ऊंचे स्थान पर स्पीकर की कुर्सी स्थित है। लोकसभा के अध्यक्ष को स्पीकर कहा जाता है। सर रिचर्ड बेकर ने
वास्तुकला का सुन्दर नमूना पेश करते हुए काष्ठ से सदन की दीवारों तथा सीटों का डिजाइन तैयार किया। स्पीकर की कुर्सी के विपरीत दिशा में पहले भारतीय विधायी सभा के अध्यक्ष विट्ठल भाई
पटेल का चित्र स्थित है। अध्यक्ष की कुर्सी के नीचे की ओर पीठासीन अधिकारी की कुर्सी होती है जिस पर
सेक्रेटी-जनरल (महासचिव) बैठता है। इसके
पटल पर सदन में होने वाली कार्यवाई का ब्यौरा लिखा जाता है। मंत्री और सदन के अधिकारी भी अपनी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखते हैं। पटल के एक ओर सरकारी पत्रकार बैठते हैं। सदन में 550
सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। सीटें 6 भागों में विभाजित हैं। प्रत्येक भाग में 11 पंक्तियां हैं। दाहिनी तरफ की 1 तथा बायीं तरफ की 6 भाग में 97 सीटें हैं। बाकी के चार भागों में से प्रत्येक में 89 सीटें हैं। स्पीकर की कुर्सी के दाहिनी ओर सत्ता पक्ष के लोग बैठते हैं और बायीं ओर विपक्ष के लोग बैठते हैं।

|~ राज्य सभा ~|

इसको उच्च सदन कहा जाता है। इसमें सदस्यों की संख्या 250 तक हो सकती है। उप राष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। राज्य सभा के
सदस्यों का चुनाव मतदान द्वारा जनता नहीं करती है,बल्कि राज्यों की विधानसभाओं के द्वारा सदस्यों का निर्वाचन होता है। यह स्थायी सदन है। यह कभी भंग
नहीं होती। 12 सदस्यों का चुनाव राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। ये सदस्य क ला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियां होती हैं। इस सदन की सारी कार्यप्रणाली का संचालन भी लोकसभा की तरह होता है।

|~ केंद्रीय हाल ~|

केंद्रीय कक्ष गोलाकार है। इसके गुंबद का व्यास 98 फीट (29.87 मीटर) है। यह विश्व के सबसे महत्वपूर्ण गुम्बद में से एक है। केंद्रीय हाल का इतिहास में विशेष महत्व है। 15 अगस्त 1947
को अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरण इसी कक्ष में हुआ था। भारतीय संविधान का प्रारूप
भी इसी हाल में तैयार किया गया था। आजादी से पहले केंद्रीय हाल का उपयोग केंद्रीय विधायिका और
राज्यों की परिषदों के द्वारा लाइब्रेरी के तौर पर
किया जाता था। 1946 में इसका स्वरूप बदल दिया गया और यहां संविधान सभा की बैठकें होने लगी। ये बैठकें 9 दिसम्बर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक हुई। वर्तमान में केंद्रीय हाल का उपयोग
दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए होता है, जिसको राष्ट्रपति संबोधित करते हैं।

♥ शरीर के तंत्र ♥

प्रत्येक कार्य के लिए कई अंग मिलकर एक तंत्र बनाते हैं !

पाचनतंत्र (Digestive system), श्वसन के लिए श्वसन तंत्र आदि।

♥ पाचन तंत्र ( Digestive system ) ♥

- पाचन तंत्र में मुख, ग्रासनली, आमाशय, पक्वाशय, यकृत, छोटी आँत, बड़ी आँत इत्यादि होते हैं। पाचन तंत्र में भोजन के पचने की क्रिया होती है। भोजन में हम मुख्य  रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइ़ड़्रेट और वसा लेते हैं। इनका पाचन पाचन तंत्र में उपस्थिति एन्जाइम व अम्ल के द्वारा होता है।

♥ श्वसन तंत्र (respiratory system) ♥

श्वसन तंत्र में नासा कोटर कंठ, श्वासनली, श्वसनी, फेंफड़े आते हैं। सांस के माध्यम से शरीर के प्रत्येक भाग में ऑक्सीजन पहुँचता है तथा कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलती है। रक्त श्वसन तंत्र में में सहायता करता है। शिराएं अशुद्ध रक्त का वहन करती हैं और धमनी शुद्ध रक्त विभिन्न अंगों में पहुँचाती है।

♥ उत्सर्जन तंत्र (Excretory system)  ♥

उत्सर्जन तंत्र में मलाशय, फुफ्फुस, यकृत, त्वचा तथा वृक्क होते हैं। शारीरिक क्रिया में उत्पन्न उत्कृष्टï पदार्थ और आहार का बिना पचा हुआ भाग उत्सर्जन तंत्र द्वारा शरीर के बाहर निकलते रहते हैं। मानव शरीर में जो पथरी बनती है वह सामान्यत: कैल्शियम ऑक्सलेट से बनती है। फुफ्फुस द्वारा हानिकारक गैसें निकलती हैं। त्वचा के द्वारा पसीने की ग्रंथियों से पानी तथा लवणों का विसर्जन होता है। किडनी में मूत्र का निर्माण होता है।

♥ परिसंचरण तंत्र (Circulatory System) ♥

शरीर के विभिन्न भागों में रक्त का विनिमय परिसंचरण तंत्र के द्वारा होता है। रक्त परिसंचरण तंत्र में हृदय, रक्तवाहिनियां नलियां (Blooad vessels), धमनी (Artery), शिराएँ (veins), केशिकाएँ (cappilaries) आदि सम्मिलित हैं। हृदय में रक्त का शुद्धीकरण होता है। हृदय की धड़कन से रक्त का संचरण होता है। रक्त संचरण की खोज सन 628 में विलियम हार्वे ने किया था। सामान्य व्यक्ति में एक मिनट में 72 बार हृदय में धकडऩ होती है।

♥ अंत:स्रावी तंत्र (Endorcine system) ♥

शरीर के विभिन्न भागों में उपस्थित नलिका विहीन ग्रंथियों को अंत:स्रावी तंत्र कहते हैं। इनमें हार्मोन बनते हैं और शरीर की सभी रासायनिक क्रियाओं का नियंत्रण इन्हीं हार्मोनों द्वारा होता है। उदाहरण- अवटु ग्रंथि (thyroid gland), अग्न्याशय (Pancreas), पीयूष ग्रंथि (Pituitory Gland),  अधिवृक्क (Adrenal gland) इत्यादि। पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि भी कहते हैं। यह परावटु ग्रंथि को छोड़कर अन्य ग्रंथियों को नियंत्रित करती है।

♥ कंकाल तंत्र (Skeletal System) ♥

मानव शरीर कुल 206 हड्डिïयों से मिलकर बना है। हड्डिïयों से बने ढांचे को कंकाल-तंत्र कहते हैं। हड्डिïयां आपस में संधियों से जुड़ी रहती हैं। सिर की हड़्डी को को कपाल गुहा कहते हैं।

♥ लसीका तंत्र (Lymphatic System) ♥

लसीका ग्रंथियाँ विषैले तथा हानिकारक पदार्थों को नष्टï कर देती हैं और शुद्ध रक्त में मिलने से रोकती हैं। लसीका तंत्र छोटी-छोटी पतली वाहिकाओं का जाल होता है। लिम्फोसाइट्स ग्रंथियां विषैले तथा हानिकारक पदार्र्थों को नष्ट कर देती हैं और शुद्ध रक्त को मिलने से रोकती है।

♥ त्वचीय तंत्र (Cutaneous System) ♥

शरीर की रक्षा के लिए सम्पूर्ण शरीर त्वचा से ढंका रहता है। त्वचा का बाहरी भाग स्तरित उपकला (Stratified epithelium) के कड़े स्तरों से बना होता है। बाह्म संवेदनाओं को अनुभव करने के लिए तंत्रिका के स्पर्शकण होते हैं।

♥ पेशी तंत्र (Muscular System) ♥

पेशियाँ त्वचा के नीचे होती हैं। सम्पूर्ण मानव शरीर में 500 से अधिक पेशियाँ होती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं। ऐच्छिक पेशियाँ मनुष्य के इच्छानुसार संकुचित हो जाती हैं। अनैच्छिक पेशियों का संकुचन मनुष्य की इच्छा द्वारा नियंत्रित नहीं होता है।

♥ तंत्रिका तंत्र (Nervous System) ♥

तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों एवं सम्पूर्ण जीव की क्रियाओं का नियंत्रण करता है। पेशी संकुचन, ग्रंथि स्राव, हृदय कार्य, उपापचय तथा जीव में निरंतर घटने वाली अनेक क्रियाओं का नियंत्रण तंत्रिका तंत्र करता है। इसमें मस्तिष्क, मेरू रज्जु और तंत्रिकाएँ आती हैं।

♥ प्रजनन तंत्र ♥

सभी जीवों में अपने ही जैसी संतान उत्पन्न करने का गुण होता है। पुरुष और स्त्री का प्रजनन तंत्र भिन्न-भिन्न अंगों से मिलकर बना होता है।

♥ विशिष्ट ज्ञानेन्द्रिय तंत्र (Special Organ System) ♥

देखने के लिए आँखें, सुनने के लिए कान, सूँघने के लिए नाक, स्वाद के लिए जीभ तथा संवेदना के लिए त्वचा ज्ञानेन्द्रियों का काम करती हैं। इनका सम्बंध मस्तिष्क से बना रहता है।

♥ રાષ્ટ્રપતિ ભવન ♥

→  તે નવી દિલ્હીના ''રાયસીના હીલ્સ'' પર આવેલું છે.

→  તેનું નિર્માણ વાઇસરોયના નિવાસસ્થાન તરીકે કરવામાં આવ્યું હતું.

→  તેના મુખ્ય આર્કિટેક્ચર ''એડવીન લુટીયન્સ'' હતાં.

→  તેનું ઔપચારીક ઉદઘાટન ઇ.સ.1931 માં થયું હતું.

→  તે દુનિયાનું સૌથી મોટું રાષ્ટ્રપતિ ભવન છે.

→  તેમાં કુલ 4 માળ છે અને 340 રૂમ છે.

→ તે કુલ 2 લાખ ચો.ફૂટના ક્ષેત્રફળમાં બનાવાયેલું છે.

→ તેના નિર્માણમાં 70 કરોડ ઇંટો અને 30 લાખ ક્યુબિક ફૂટ પથ્થરોનો ઉપયોગ કરાયો છે.આશ્ચર્યની વાત તો એ છે કે તેના નિર્માણમાં ક્યાય લોખંડનો ઉપયોગ થયો જ નથી.

→  બગીચાઓ સહિત તેના નિર્માણમાં તે સમયે રૂ.1 કરોડ 40 લાખનો ખર્ચ થયો હતો.

→ તેનું મુઘલ ગાર્ડન 13 એકર ક્ષેત્રફળમાં ફેલાયેલું છે.તેમાં લગભગ 250 પ્રકારનાં ગુલાબનાં છોડ છે આ ઉપરાંત બીજા પણ અન્ય કેટલીય જાતનાં ફૂલ-છોડ અહી વિકસાયેલાં છે.

→ આઝાદી પછી અત્યાર સુધીમાં 12 રાષ્ટ્રપતિઓ રહી ચૂક્યાં છે.13 માં રાષ્ટ્રપતિ શ્રીમતી પ્રતિભા પાટિલ હાલ નિવાસ કરે છે.

Wednesday, 24 September 2014

♥ MISSION MARS ORBITER ♥

♦ મંગળયાનની ઐતિહાસિક સફળતાની 10 મહત્વની વાતો ♦
અમદાવાદ તા. 24 સપ્ટેમ્બર, 2014
→  ભારતીય વૈજ્ઞાનિકોએ એ કામ કરી બતાવ્યું છે, જેની કલ્પના કરવી પણ થોડા વર્ષો પહેલા અશક્ય હતી.
→  અત્યાર સુધી દુનિયાભરના ઘણા દેશો કુલ મળીને 51 વાર પ્રયત્ન કરી ચુક્યા છે કે સૌથી રહસ્યમયી કહેવાતા મંગળ ગ્રહ સુધી પહોંચી શકાય, પરંતુ માત્ર 21 અભિયાનને જ સફળતા પ્રાપ્ત થઈ છે.
→  કોઈએ વિચાર્યું ન્હોતું કે સૌથી છેલ્લે પ્રયત્ન કરનાર ભારત પોતાના પ્રથમ પ્રયત્નમાં જ સફળતાનો ઝંડો ફરકાવશે. ભારતીય મંગળયાને બુધવારે મંગળગ્રહની કક્ષામાં પ્રવેશ કરી ઈતિહાસ રચી દીધો છે, તો ચાલો જાણીએ, આ અભિયાન સાથે જોડાયેલી કેટલીક ખાસ વાતો...
→  સોવિયેત રશિયા, અમેરિકા અને યુરોપ બાદ મંગળની કક્ષામાં પ્રવેશ કરનાર ભારત પ્રથમ દેશ બની ગયો છે...
→  મંગળ અભિયાનોમાં અત્યાર સુધી માત્ર અમેરિકી એજન્સી નાસા, યૂરોપિયન સ્પેશ એજન્સિ અને પુર્વ સોવિયટ સંધ સફળ રહ્યા છે. પ્રથમ સફળ મંગળ અભિયાન નાસાનું 'મેરીનર 9' હતુ, જે
વર્ષ 1971માં થયો હતો... વર્ષ 2011માં ચીનના 'યિંગહુઓ-1'ને સફળતા મળી હતી.
→  વડાપ્રધાન નરેન્દ્ર મોદીએ ઈસરોના લાલગ્રહ
કહેવાતા મંગળની કક્ષામાં પ્રવેશ કરી એક વિશેષ ગ્રુપમાં સામેલ થવા માટે શુભેચ્છા આપી છે, જેમા અત્યાર સુધી હાલ ત્રણ એજન્સિઓ સામેલ છે.
→  નાસાએ ટ્વિટ કર્યું છે કે, 'અમે ઈસરોને મંગળ પર પહોંચવા માટે અભિનંદન પાઠવીએ છીએ... લાલગ્રહનુ અધ્યયન કરનાર મિશનોમાં મંગળયાન (MarsOrbiter) સામેલ થયું.'
→  મંગળગ્રહ પર મોકલાયેલા અમેરિકી રોવર
ક્યૂરિયોસિટી તરફથી ટ્વિટ કરાયુ કે, 'નમસ્તે મંગળયાન, મંગળની કક્ષામાં પહોંચવા માટે
ઈસરો તથા પહેલા ભારતીય મિશનને અભિનંદન'
→  મંગળયાન અભિયાનની ડિઝાઇન, આયોજન અને અમલીકરણ ઈસરો દ્વારા માત્ર 450 કરોડ
રૂપિયા એટલે કે 6 કરોડ 70 લાખ અમેરિકી ડોલરમાં તૈયાર કરવામાં આવ્યું છે.
→  વડાપ્રધાન નરેન્દ્ર મોદીએ ફરી એકવાર કહ્યું કે, 'હોલીવુડની ફિલ્મ બનાવવામાં પણ વધારે ખર્ચો થાય છે.' ઉલ્લેખનીય છે કે વડાપ્રધાન અગાઉ પણ કહી ચુક્યા છે કે, 'હોલીવુડની સાઈન્સ
ફિક્શન ફિલ્મ 'ગ્રેવિટી'નું બજેટ આપણા મંગળયાનથી વધારે હતુ.
→  મંગળયાન લાલ ગ્રહની સપાટી, બંધારણ ખનિજીકરણ, અને પર્યાવરણનો અભ્યાસ કરશે. મંગળયાન પર લાગેલા પાંચ સૌર-ઉર્જા સંચાલિત
ઉપકરણ એવા એકડાં એકત્રિક કરશે, જેનાથી મંગળ ગ્રહના હવામાન વિશે જાણકારી મળશે, એ પણ જાણી શકાશે કે તે પાણી ક્યા છે જે ક્યારેક વધારે મંગળ ગ્રહ પર હતું.
→  મંગળયાન મંગળ ગ્રહથી નજીકની સ્થિતિમા આવતા માત્રે 365 કિલોમીટર દૂર હશે, જ્યારે સૌથી દૂર હોવાથી તે લાલ ગ્રહ સપાટીથી 80,000 કિલોમીટર દૂર રહેશે.
♥ મંગળ મિશન સાથે જોડાયેલી કેટલીક
રસપ્રદ વાતો  ♥
→  મંગળયાનનો આકાર નેનો કાર જેટલો છે. સંપુર્ણ માર્સ ઓર્બિટર મિશનનો કુલ ખર્ચ 450 કરોડ છે.
→  ભારતના મંગળ મિશનનું બજેટ અમેરિકાના નાસાના મંગળ મિશના બજેટના 10માં ભાગનું છે.
એટલું જ નહિ ભારતના મંગળ મિશનનું બજેટ
હોલીવુડ ફિલ્મ ગ્રેવીટીની કિંમત કરતાં પણ ઓછું છે.
→  આ ખર્ચ બોઇંગ-787ના નિર્માણ પર આવતા ખર્ચ કરતા લગભગ અડધો છે. ઇસરોએ આ મિશન 15 મહિનાના રેકોર્ડ સમયમાં તૈયાર કર્યો.
→  ગત વર્ષે નવેમ્બરમાં ભારતનું પ્રથમ મંગળ
મિશન સફળતા પૂર્વક લોન્ચ થયું હતું મંગળયાનને 300 દિવસમાં 97 કરોડ
કિલોમીટરની યાત્રા કરી મંગળ ગ્રહ પર
પહોંચ્યો.
→  આ મિશનને સફળ બનાવવા માટે છેલ્લા 10 મહિનાથી 200 વૈજ્ઞાનિકો રાત-દિવસ કામ
કરી રહ્યા છે.
♥ એક કલાકમાં 80,000 કિમીની ઝડપે
મંગળયાને 22 કરોડ 50 લાખ કિ.મીનુ અંતર કાપ્યું ♥
→  બેંગ્લોર 23 સપ્ટેમ્બર 2014 પૃથ્વીથી મંગળનું સરેરાશ અંતર 22 કરોડ 50 લાખ કિલોમીટર છે. મંગળયાને આ અંતરને 80 હજાર પ્રતિ કલાકની ઝડપે પાર પાડ્યું હતું. જો કે મંગળની ભ્રમણ કક્ષામાં પ્રવેશ કરવા માટે સતત તેની ગતિમાં ધટાડો કરવામાં આવી રહ્યો હતો.
→  મંગળયાનના મુખ્ય તરલ (લિક્વીડ) એન્જીનને સોમવારના રોજ સફળ પરીક્ષણ કરવામાં આવ્યું હતું. મંગળની ભ્રમણ કક્ષામાં પહોંચે તે પહેલા આ એન્જીનને ચાલું કરી એક વાર ચકાસવું ખુબ જ અગત્ય હતું, કારણ કે સ્પેસનું મુખ્ય એન્જીન છેલ્લા 300 દિવસ (લગભગ 10 મહિના)થી સુશુપ્ત અવસ્થામાં હતું.
→  ઇસરોના જણાવ્યા અનુસાર એન્જીન નિયત કરેલા સમય મુજબ 4 સેકન્ડ વ્યવસ્થિત કામ કર્યું હતું.
સોમવારની સફળતાની સાથે ભારત મંગળ
ગ્રહની ગુરૂત્વાકર્ષણ ક્ષેત્રમાં દેશનો ઉપગ્રહ
પહોંચનારો દેશનો પહેલો દેશ બની ગયો હતો.
→  ભારતના મંગળ અભિયાન સફળ થવાની સાથે જ અંતરિક્ષમાં સંશોધનમાં આગવું સ્થાન મેળવી લીધું છે. આ મિશનના સફળ થવાથી દેશને વિદેશી સેટેલાઇટ લોન્ચ કરવાના ઓર્ડરો મળવાના પુરી શક્યતા છે.
→  આ સમયે મંગળની દુર્લભ અને ખાસ વાતો જાણવા સાત મિશન કામ કરી રહ્યા છે. આ દરેક અભિયાન અમેરિકાના મિશન છે જેને હવે ભારત પાર પાડશે. ઉપરાંત માર્સ ઓડિસી, માર્સ
એક્સપ્રેસ અને માર્સ ઓર્બિટર મંગળની પરિક્રમાં કરી રહ્યાં છે. જ્યારે બે રોવર્સ-સ્પિરિટ અને ઓપર્ચ્યુનિટી પર પહેલાથી જ હાજર છે. અને તેની સાથે લેન્ડર-ફીનિક્સ પણ ત્યા તૈનાત છે.
→  ભારતની આ ઝુંબેશ જો સફળ થશે તો સ્પેસ
અને સાઇન્સ ક્ષેત્રમાં ભારત દુનિયામાં એક નવું મુકામ મેળવી લેશે. મંગળયાન દ્વારા ભારત મંગળ ગ્રહ પર જીવનના આસાર શોધી ત્યાના પર્યાવરણની તપાસ કરવા માંગે છે. આ સ્પેસ તે પણ જાણવા ઉત્સુક છે કે આ લાલ ગ્રહ પર મિથેન
છે કે નહી. મિથેન ગેસની હાજરી ગ્રહમાં જેવિક
ગતિવિધિયોના સંકેત આપે છે. આ જ કારણેને લીધે મંગળયાનને લગભગ 15 કિલો વજનના કેટલાય અત્યઆધુનિક ઉપકરણો(સાધનો)થી સજ્જ કરવામાં આવ્યું છે. આ ઉપકરણોમાં પાવરફુલ કેમેરાનો પણ સમાવેશ થાય છે. અહિં મિથેન ઉપરાંત ખનીજ(મિનરલ્સ) પણ છે કે નહી તે જાણવા મળશે.
→  મંગળયાનને ગત વર્ષે 5 નવેમ્બરના રોજ 2
વાગ્યેને 36 મિનિટ પર ઇસરોના શ્રીહરિકોટા અંતરિક્ષ કેન્દ્રથી રવાના કરવામાં આવ્યું હતું. આ
સ્પેસને પોલર સેટેલાઇટ લોન્ચ વીઇકલ
(પીએસએલવી)સી-25ની મદદથી છોડવામાં આવ્યું  હતું. અમેરિકા અને રશિયાએ પોતાના મંગળયાનને છોડવા માટે ભારતના પાએસએલવી કરતા મોટા અને ખાસ ડિઝાઇન કરેલા મોંધા રોકેટ
દ્વારા પ્રેક્ષેપણ કરવામાં આવ્યું હતું.
→ પહેલા આ આ સ્પેસને 19 ઓક્ટોમ્બરના રોજ
અંતરિક્ષમાં મોકલવવાની યોજના હતી પણ
દક્ષિણ પ્રશાંત મહાસાગરમાં ખરાબ હવામાનના કારણે આ મિશન પાછળ ધકેલાયું. આ મિશન પાછળ 450 કરોડ રૂપિયાનો ખર્ચ થયો છે. આ સ્પેસનો કુલ વજન 1350 કિલો છે. મંગળયાનને
છોડ્યા બાદ તેના માર્ગને સાત વખત સુધારવામાં આવી હતી તેથી આ મંગળની દિશામાં પોતાની યાત્રાને ચાલુ રાખી શકે.
→ મંગળયાન મિશનના કારણે ભારતની આબરૂ દાવ પર લાગી હતી. આ પહેલા અમેરિકા, રશિયા અને યુરોપના કેટલાક દેશો સંયુક્ત રીતે મંગળ પર પોચાના મિશનને મોકલી શક્યા છે. ચીન અને જાપાન આ પ્રયત્નમાં હજું સુધી સફળ રહ્યા નથી.
રશિયા પણ પોતાના કેટલાય નિષ્ફળ પ્રયત્ન પછી પોતાના મિશનમાં સફળ થયું હતું. અત્યાર સુધી મંગળ ગ્રહ ઉપર અભ્યાસમાં શરૂ કરવામાં આવેલા અભિયાનમાં બે તૃતીયાંશ અભિયાન નિષ્ફળ રહ્યા છે.
© આ લોકો છે મિશન મંગળના ભેજાબાજ...! ©
અમદાવાદ તા. 24 સપ્ટેમ્બર, 2014
ભારત દુનિયાનો પ્રથમ દેશ બની ગયો છે જે પ્રથમ પ્રયત્નમાં જ મંગળ પર પહોંચવા માટે સફળ થયો છે. આ કાર્ય પાછળ જેનું ભેજુ લાગ્યું છે તે છે કે રાધાકૃષ્ણન જેઓ ઈસરોના ચેરમેન અને સ્પેસ ડિપાર્ટમેન્ટના સેક્રેટરી તરીકે કાર્યરત છે.
આ મિશનનું નેતૃત્વ તેમની પાસે છે અને
ઈસરોની દરેક એક્ટીવિટીની જવાબદારી તેમની પાસે છે.
~ ♥ એમ. અન્નાદુરઈ ♥ ~
આ મિશનના પ્રોગ્રામના ડાયરેક્ટરના પદે
કાર્યરત છે. તેઓએ ઈસરો વર્ષ 1982માં જોડાયા હતા અને ઘણા પ્રોજેક્ટનું નેતૃત્વ પણ કર્યું છે.
તેમની પાસે બજેટ મેનેજમેન્ટ, શિડ્યુઅલ અને
સાધનોની જવાબદારી છે. તેઓ ચંદ્રયાન-1ના પ્રોજેક્ટ ડાયરેક્ટર પણ રહ્યા છે.
~ ♥ એસ. રામકૃષ્ણન ♥ ~
રામકૃષ્ણન વિક્રમસારાભાઈ સ્પેસ સેન્ટરના ડાયરેક્ટર છે અને લોન્ચ ઓથોરિઝન બોર્ડના સભ્ય છે. તેઓ વર્ષ 1972માં ઈસરોમાં જોડાયા હતા અને વધુ પીએસએલવીને બનાવવામાં મહત્વપુર્ણ જવાબદારી નિભાવી હતી.
~ ♥ એસ.કે. શિવકુમાર ♥ ~
શિવકુમાર ઈસરો સેટેલાઈટ સેન્ટરના ડાયરેક્ટર છે તેઓ વર્ષ 1976માં ઈસરોમાં જોડાયા હતા અને
તેમણે ઘણા ભારતીય સેટેલાઈટ મિશનમાં મોટું યોગદાન આપ્યું છે.

♠ મંગળ ♠

♠ મંગળ વિશે તમે અવાર નવાર વાચ્યું હશે. મંગળ ઉપર જીવન હોવાનું પણ ઘણું ચર્ચાઇ રહ્યું છે જેની જાણકારી એકદમ રસપ્રદ હશે.

~»  રાતાગ્રહની અજાણી વાતો ઉપર એર નજર મંગળને લાલા ગ્રહ કહેવામાં આવે છે કેમ કે
મંગળની માટીમાં વધારે ખનિજ કાટ લગવાના કારણે વાતાવણ અને માટી લાલ દેખાય છે.

~»  મંગળને બે ચન્દ્રમાં છે, જેમના નામ ફોબોસ
અને ડેમોસ છે. ફોબોસ ડેમોસથી થોડો મોટો છે. ફોબોસ મંગળની સપાટીથી માત્ર 6 હજાર કિલોમીટર ઉપર પરિક્રમા કરે છે.

~»  ફોબોસ ધીમે ધીમે મંગળ તરફ જુકી રહ્યો છે, તે દર સૌ વર્ષમાં મંગળ તરફ 1.8 મીટર જુકી જાય છે. એવું અનુમાન લગાવવામાં આવે છે કે 5 કરોડ
સાલમાં ફોબોસ મંગળને ટકરાશે કે પછી તૂટી જશે અને ચાર તરફ રિંગ બનાવી દેશે.

~»  ફોબોલ ઉપર ગુરુત્વાકર્ષણ ધરતીના ગુરુત્વાકર્ષણનો એક હજારોમાં ભાગ છે. એટલે જો પૃથ્વી ઉપર કોઇ વયક્તિનું વજન 50 કિલોગ્રામ છે તો મંગળ ઉપર તેનું વજન માત્ર 50 ગ્રામ
થઇ જશે.

~»  જો એવું માનવામાં આવે છે કે સૂરજ એખ
દરવાજા જેટલો માટો છે, તો ધરતી એક સિક્કા જેવી હસે અને મંગળ એક એસ્પિરીન ટેબલેટ જેવી હશે.

~»  મંગળ ઉપર એક દિવસના 24 કલાક કરતાં થોડો વધારે હોય છે અને મંગળને સૂરજની પરિક્રમા ધરતી માટે 687માં કરે છે. એટલે મંગળ ઉપર એક વર્ષ ધરતીના 23 મહિનાની બરાબર હશે.

~»  મંગળ અને ધરતી લગભગ બે વર્ષમાં એક વખત એક બીજાની એકદમ નજીક હોય છે, જ્યારે બંન્ને ગ્રહો વચ્ચેનું અંતર 5 કરોડ 60 લાખ કિલોમીટર હોય છે.

~»  મંગળ ગ્રહ ઉપર પાણી બરફના રૂપમાં ધ્રુવો ઉપર મળે છે અને એવું પણ અનુમાન છે કે મંગળ ઉપર
પાણી ખારું હોય છે.

~»  વૈજ્ઞાનિકો એવું માને છે કે મંગળ ઉપર લગભગ ત્રણ વર્ષ અરબ વર્ષ પહેલાં પુર આવી હતી. પરંતુ એ નથી ખબર કે પાણી ત્યારે ક્યાંથી આવ્યું હતું.

~»  મંગળ ઉપર તાપમાન ખૂબ વધારે તો ક્યારે
ક એક દમ ન્યૂનતમ થઇ જાય છે. મંગળ એક રણ વિસ્તાર જેવું છે, માટે મંગળ ઉપર કોઇ જવા માંગે છે તો તેણે પાણીનો પુરવઠો સૌથી વધારે પાસે
રાખવો પડશે.

Tuesday, 23 September 2014

♥ શુક્ર ♥

♦ પૃથ્વી પરથી નરી આંખે દેખાતો આપણો પાડોશી ગ્રહ - શુક્ર ♦

સંધ્યા ટાણે ક્ષિતિજમાં દેખાતો તેજસ્વી શુક્ર
તારો જાણીતો છે. આ શુક્ર તારો એટલે આપણો પાડોશી ગ્રહ શુક્ર. શુક્ર સુંદર તો છે જ પણ સૌંદર્યનો દેવ ગણાય છે. શુક્ર ઉપર કાર્બન ડાયોક્સાઇડના સફેદ વાદળો સૂર્યપ્રકાશનું પુનરાવર્તન કરે છે
એટલે તે તેજસ્વી દેખાય છે.

શુક્ર પૃથ્વીના કદનો છે. તેને પૃથ્વીની બહેન
પણ કહે છે. શુક્ર ઉપર કાર્બન ડાયોક્સાઇડ અને સલ્ફ્યુરિક એસિડના વાદળો છવાયેલા રહે છે એટલે તે સૂર્યની ગરમીનું વધુ શોષણ કરે છે. શુક્રની સપાટી ખૂબ જ ગરમ છે. ધાતુઓ પણ પીગળીને વહેવા માંડે. શુક્રની સપાટી પર અનેક જ્વાળામુખી પર્વતો છે તેની ખીણોમાં ધગધગતો લાવારસ
ખદબદતો હોય છે. શુક્ર પરના જ્વાળામુખીઓ એક
સરખા ઉંધા વાડકા આકારના હોય છે.

મેગેલન નામના સેટેલાઇટ દ્વારા શુક્રની સપાટીની નજીકથી અભ્યાસ થયેલો. આસપાસ છવાયેલા વાદળોના કારણે શુક્રની સપાટી કદી દેખાતી નથી પરંતુ મેગેલનનાં રડાર પદ્ધતિથી તેની તસવીરો લેવાઈ હતી. આ તસવીરોમાં સપાટીનું રૌદ્ર સ્વરૃપ દેખાય છે તેમાં જ્વાળામુખીઓ અને ધગધગતા લાવાના ખાબોચિયા અને વ્હેલ દેખાય છે.

→ શુક્રનો વ્યાસ ૧૨૧૦૦ કિલોમીટર છે.

→ તે આપણા ૨૨૫ દિવસમાં સૂર્યની એક પ્રદક્ષિણા કરે છે.

→ શુક્રને એક પણ ચંદ્ર નથી અને ચુંબકીય ક્ષેત્ર પણ નથી.

→ શુક્ર પોતાની ધરી પર સૌથી ઓછી ઝડપે ફરે છે.
→ આપણા ૨૪૩ દિવસ થાય ત્યારે શુક્રનો એક દિવસ થાય છે.

♥ AWARD - CATEGORY ♥

1. Oscar -Film

2. Dada sahib phalke - Film

3. Grammy - Music

4. Pulitzer - Journalism and
Literature

5. Arjun - Sports

6. Bowelay - Agriculture

7. Kalinga - Science

8. Dhanwantri -  Medical science

9. Bhatnagar - Science

10. Nobel prize - Peace , Literature,
Economics, Physics, Chemistry,
Medical science

11. Abel -  Maths

12. Merlin -  Magic

13. Bharat ratna - Art , Science, Public services, Sports

14. Vyas samman - Literature

15. Bihari award - Literature

16. Saraswati samman - Literature

17. Man booker --->> Literature

18. Vachspati samman - Sanskrit literature

Monday, 22 September 2014

♥ जिराफ ♥

सभी तृणभक्षियों में जिराफ सबसे अधिक विलक्षण एवं आकर्षक है। वह संसार का सबसे ऊंचा जीव है। उसकी अधिकतम ऊंचाई ५.५ मीटर होती है। इस ऊंचाई का लगभग आधा उसकी मीनार जैसी लंबी गर्दन है। आश्चर्य की बात यह है कि इस लंबी गर्दन में
भी हड्डियों की संख्या उतनी ही होती है जितनी कि हमारी या किसी भी स्तनधारी की गर्दन में होती है, यानी सात। इस ऊंची गर्दन को संतुलित रखने के लिए जिराफ के आगे के दोनों पैर भी खूब लंबे होते हैं। इन पैरों के सिरे पर गाय-भैंस की तरह दो खुर होते हैं। जिराफ के सिर पर बालों से ढके दो छोटे सींग भी होते हैं। इन सींगों के भीतर हड्डियां नहीं होतीं। जिराफ की छोटी सी पूंछ के सिरे पर गाय की पूंछ के समान बालों का एक गुच्छा होता है।

जिराफ केवल अफ्रीका में पाए जाते हैं और वहां उनकी दो जातियां हैं। दोनों में शरीर पर बनी चिकत्तियों का आकार अलग होता है। मसाई जिराफ में ये चिकत्तियां तारे के आकार की होती हैं, जबकि रेटिक्युलेटेड जिराफ में ये चौकोर होती हैं।

जिराफ की गर्दन की असाधारण ऊंचाई के बारे में वैज्ञानिकों ने अनेक अटकलें लगाई हैं। इन विद्वानों में प्रसिद्ध जीवशास्त्री चार्ल्स डारविन भी शामिल है। इन वैज्ञानिकों के विचार के अनुसार शुरू शुरू में जिराफ घोड़े के समान साधारण लंबाई की गर्दनवाला प्राणी था। वह अन्य तृणभक्षियों के समान घास-पत्ती आदि खाता था। घास-पात खानेवाले और भी अनेक प्राणी थे, जैसे हिरण, घोड़े, गाय-भैंस आदि आदि।

अतः इन चीजों के लिए इन जीवों में काफी प्रतिस्पर्धा होती थी। इस प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए जिराफ
पेड़ों की उन ऊंची डालियों पर लगे पत्तों को खाने लगे। वे पेड़ों की ऊपरी डालियों तक पहुंचने के लिए
अपनी गर्दन को अक्सर ऊपर बढ़ाया करते थे। कुछ जिराफ प्राकृतिक रूप से ही अन्यों से अधिक लंबी गर्दन वाले पैदा हुए। वे अपनी लंबी गर्दन के कारण
अधिक भोजन प्राप्त करने में सफल हुए। इस कारण से वे अन्य जिराफों से अधिक समय तक जीवित रह सके और अधिक संख्या में संतान छोड़ सके। इन संतानों में भी अपनी माता-पिता के समान लंबी गर्दन का गुण मौजूद था। जिराफों की इस पीढ़ी में से
भी प्रकृति ने उन जिराफों को अधिक सफल बनाया जिनकी गर्दन सामान्य से अधिक लंबी थी। जब हजारों सालों तक इस प्रकार का प्राकृतिक चयन
होता रहा तो जिराफों की गर्दन की लंबाई आजकल की जितनी हो गई।

जिराफों की दृष्टि अत्यंत तीक्ष्ण होती है और चूंकि उनकी ऊंचाई भी बहुत अधिक है, इसलिए वे दूर-दूर तक देख सकते हैं। जब वे सिंह आदि परभक्षियों को देख लेते हैं, तब ५० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भाग निकलते हैं। जमीन चाहे जितना ऊबड़- खाबड़ क्यों न हो, उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती। यद्यपि जिराफ देखने में काफी अटपटी बनावट के जीव लगते हैं, लेकिन दौड़ते समय उनका सारा अटपटापन दूर हो जाता है और उनकी छटा देखते
ही बनती है। दौड़ते समय वे शरीर के एक तरफ
के दोनों पैरों को एक-साथ आगे बढ़ाते हैं, इसलिए दौड़ने की उनकी शैली अन्य तृणभक्षियों से भिन्न होती है। जब कोई जिराफ शत्रुओं द्वारा घिर जाता है तब अपना बचाव करने के लिए अपने आगे के पैरों से
लात मारता है। सिंह आदि इन पैरों की चपेट में आ जाएं तो एक ही लात में उनका काम तमाम हो जाता है।

जिराफ सूखे, खुले वनों में रहते हैं और वे पेड़ों की ऊंची डालियों को चरते हैं। अपनी ऊंचाई के कारण वे उन पत्तों तक भी पहुंच जाते हैं जो अन्य जानवरों की पहुंच के बाहर होते हैं। वे दिन भर और कभी कभी रात को भी चरते रहते हैं। पानी पीते वक्त उन्हें थोड़ी तकलीफ होती है क्योंकि उन्हें अपनी लंबी गर्दन
को पानी तक झुकाना पड़ता है। इसके लिए वे आगे के दोनों पैरों को खूब फैला लेते हैं और धीरे-धीरे गर्दन को झुकाते हैं। इस अवस्था में वे कई बार सिंह का शिकार हो जाते हैं क्योंकि झुके होने पर वे सिंह के
आगमन को भांप नहीं पाते।

यद्यपि जिराफ अत्यंत कोमल स्वभाव के प्राणी हैं, लेकिन नर कई बार आपस में लड़ते हैं। तब वे अपनी लंबी गर्दन से प्रतिद्वंद्वी पर वार करते हैं। चिड़ियाघरों और सफारी उद्यानों में जिराफ आसानी से पालतू बन जाते हैं और प्रजनन भी करते हैं। उनके बच्चे अत्यंत सुंदर और मन को मोहने वाले स्वरूप के होते ह

♥ HEARTILY  THNX TO.... ↓

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Sunday, 21 September 2014

♥ भारत के 30 अजूबे ♥

1. हवा में ऊपर उठने वाला पत्थर :

महाराष्ट्र में पुणे के पास एक
छोटा सा गांव शिवापुर है, जहां पर हजरत
कमर अली दरवेश का स्थान है। कहते हैं
कि वर्तमान स्थल पर 800 वर्ष पूर्व एक
व्यायाम शाला थी। कमर अली नाम के
सूफी संत का वहां कुछ पहलवानों ने मजाक
उड़ाया। संत ने बॉडी बिल्डिंग के लिए रखे
पत्थरों पर अपना मंत्र फूंक दिया।
यहां सत्तर किलो का वजनी पत्थर मात्र
11 अंगुलियों के छोरों के छूने और संत
का नाम जोर से लेने भर से हवा में उठ
जाता है। आज भी संत कमर अली का नाम
लेने भर से पत्थर चमत्कारी ढंग से उठ
जाता है।

2. काले जादू का देश, मायोंग (असम) :

मायोंग पर आज भी रहस्य का आवरण
रहता है और इसे काले जादू की भूमि के
नाम से जाना जाता है। पबित्रा वाइल्ड
लाइफ सेंक्चुअरी के पास स्थित यह गांव
गुआहाटी शहर से 40 किमी दूर है।
माना जाता है कि मायोंग का नाम
संस्कृत शब्द माया या भ्रम से
लिया गया है। कहा जाता है
कि यहां लोग गायब हो जाते हैं, लोग
जानवरों में बदल जाते हैं और
जंगली जानवरों को पालतू
बना लिया जाता है। यहां पर
काला जादू और जादू टोना पीढ़ियों से
किया जाता रहा है। मायोंग सेंट्रल
म्युजियम में आयुर्वेद और काले जादू के बहुत से
प्राचीन अवशेष यहां पर मौजूद हैं।

3. कंकालों की झील, रूपकुंड झील,
चमोली (उत्तराखंड) :

हिमालय के पहाड़ों में 16500 फुट की ऊंचाई
पर निर्जन हिस्से में रूपकुंड झील है। यह झील
बर्फ से ढंकी और चट्टानों में बिखरे ग्लेशियरों से
भरी हुई है। इसे कंकाल झील या रहस्यमय
झील के नाम से ज्यादा जाना जाता है
और इस झील का सबसे बड़ा आकर्षण 600 से
ज्यादा कंकाल हैं जो कि इस झील से पाए
गए थे। यह नौवीं सदी से है और जब बर्फ
पिघलती है तो इसका तल स्पष्ट दिखाई
देता है। स्थानीय लोगों का मानना है
कि बाहरी लोगों की आवाजाही से
स्थानीय देवता लातू नाराज हो गए और
उन्होंने इस रास्ते में भयानक
बर्फीला तूफान भेज दिया था जिससे इन
लोगों की मौत हो गई थी।

4. जातिंगा, असम में पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या :

असम के बोराइल पहाडियों में बसा सुरम्य गांव
जातिंगा प्रत्येक मानसून में एक विचित्र
दृश्य का साक्षी बनता है। सितम्बर और
अक्टूबर के मध्य यहां पर घनी और
धुंधवाली रातों में सैकड़ों की संख्या में
प्रवासी पक्षी पूरी गति से
पेड़ों या इमारतों से टकराकर मर जाते हैं।
इस सामूहिक आत्महत्या की घटना पर सबसे
पहले साठ के दशक में प्रसिद्ध
प्रकृतिवादी ईपीजी ने दुनिया का ध्यान
आकर्षित किया, लेकिन अभी तक इसका
रहस्य नहीं सुलझा है।

5. जुड़वां बच्चों के नगर, कोदिन्ही (केरल)
और ऊमरी (इलाहाबाद) :

केरल के मल्लपुरम जिले में एक छोटा सा
कस्बा कोदिन्ही है, जिसने सारी दुनिया के
वैज्ञानिकों को आश्चर्य में डाल दिया है।
इसकी दो हजार की आबादी में से एक जैसे
जुड़वां बच्चों की 350 जोडि़यां हैं। इसे
ट्विन टाउन भी कहा जाता है
क्योंकि यहां पर प्रत्येक एक हजार
जन्मों पर छह जोड़ियां जुड़वां बच्चों की
होती हैं। कोदिन्ही के प्रत्येक परिवार में एक से
ज्यादा जुड़वां बच्चों की जोडि़यां हैं।
इलाहाबाद के पास मुहम्मदपुर
उमरी की भी यही कहानी है। गांव
की कुल 900 लोगों की जनसंख्या में 60 से
ज्यादा जुड़वां बच्चों की जोडि़यां हैं।
उमरी का जुड़वां बच्चों की दर राष्ट्रीय
औसत की तुलना में 300 गुना ज्यादा है और
शायद यह दुनिया में सबसे ज्यादा है।
शोधकर्ताओं का कहना है
कि इसका कारण जीन्स हो सकते हैं,
लेकिन बहुतों के लिए यह ईश्वरीय चमत्कार
से कम नहीं है।

6. लद्दाख का चुम्बकीय पहाड़ :

अगर आप लेह के लिए जाते हैं तो आपको
रास्ते में चुम्बकीय ताकत वाला पहाड़
मिलेगा जो कि समुद्र तल से 11 हजार
फीट की ऊंचाई पर है। समझा जाता है
कि इस पहाड़ में चुम्बकीय ताकत है
जो कि लोहे की चीजों को अपनी ओर
खींचता है। जब कारों का इग्नीशन बंद कर
दिया जाता है तब भी कारें इसकी ओर
खिंची चली आती हैं। यह एक वास्तविक
रोमांचक अनुभव है। इसे दुनिया की ग्रेविटी
हिल्स में गिना जाता है।

7. चरस के लिए कुख्यात मैलाना, हिमाचल
प्रदेश :

कुल्लू घाटी के उत्तर पूर्व में स्थित
मैलाना को 'भारत का एक छोटा यूनान'
भी माना जाता है क्योंकि यहां के
स्थानीय निवासियों का मानना है
कि वे सिकंदर महान के वंशज हैं। यह प्राचीन
गांव सारी दुनिया से कटा हुआ है और
गांव वालों की अपनी एक राजनीतिक
व्यवस्था है। इस गांव में केवल एक सौ घर हैं
लेकिन इसे सबसे ज्यादा प्रभावकारी चरस
के लिए जाना जाता है।

8. एशिया का सबसे साफ गांव,
माविलीनोंग, मेघालय :

चेरापूंजी के माविलीनोंग गांव को 'ईश्वर
का अपना बगीचा' कहा जाता है। इसे
एशिया का सबसे ज्यादा साफ गांव होने
के अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।
पर्यावरण आधारित पर्यटन को उन्नत बनाने
का यह प्रयास है। आश्चर्यजनक बात है
कि इस गांव में साक्षरता की दर
सौ फीसदी है और ज्यादातर गांववाले
धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल सकते हैं। इस
गांव में सुंदर झरने हैं और इसके अलावा इसे
लिविंग रूट्सल ब्रिज और एक बैलेंसिंग रॉक
के कारण जाना जाता है।

9. बिना दरवाजों का गांव, शनि शिंगणापुर, महाराष्ट्र :

यह गांव पूरे देश में शनि मंदिर के लिए जाना जाता है।
यह अहमदनगर से 35 किमी दूर है। इस गांव में
कभी कोई अपराध नहीं हुआ और इसे शनिदेव
का आशीर्वाद माना जाता है। गांव के
लोगों को अपने देवता पर भरोसा है और
उन्होंने गांव की रक्षा को उनके भरोसे
छोड़ रखा है। इस कारण से गांव के घरों और
कारोबारी इमारतों में न तो दरवाजे और
न ही कोई डोर फ्रेम होता है। गांव
की शून्य अपराध दर को ध्यान में रखते हुए
यूको बैंक ने इस गांव में 'लॉक-लेस'
शाखा खोली है। यह भारत में अपने किस्म
की पहली शाखा है।

10. चूहों का मंदिर, कर्णी माता मंदिर, राजस्थान :

बीकानेर से करीब 30 किमी दूर एक छोटे
से कस्बे को देशनोक कहा जाता है, जहां पर
कर्णी माता का मंदिर है। इस मंदिर में
बीस हजार से ज्यादा चूहे हैं और इन्हें
'कब्बास' कहा जाता है। मंदिर में
इनकी पूजा की जाती है क्योंकि माना जाता है
कि वे करणी माता के परिजन हैं, जिन्होंने
चूहों के रूप में जन्म लिया है। सफेद
चूहों को और भी आदर दिया जाता है
क्योंकि माना जाता है कि उन्हें
कर्णी माता और उनके बेटों का अवतार
माना जाता है।

11. सांपों की भूमि, शेतपाल, महाराष्ट्र :

महाराष्ट्र के शोलापुर जिले का शेतपाल गांव
सांपों की पूजा के लिए जाना जाता है। इस
गांव में एक प्रथा है, ‍जिसे डरावनी समझा
जा सकता है क्योंकि इस गांव के प्रत्येक घर
में छतों की शहतीरों में कोबरा सांपों के लिए
रहने का स्थान बनाया जाता है। हालांकि यहां
प्रत्येक घर में सांप मुक्त रूप से घूमते हैं, लेकिन
सांप के काटने का कोई मामला सामने नहीं
आया है।

12. मुर्दों के साथ भोजन, न्यू लकी रेस्टोरेंट, अहमदाबाद :

यहां पर कुछ ऐसा है जो कि एक ही समय पर अस्वस्थकर और आश्चर्यजनक है। न्यू लकी
रेस्टोरेंट का वातावरण कुछ अलग है क्योंकि
यह कॉफी हाउस एक सदियों पुराने मुस्लिम
कब्रिस्तान में बना है। टेबलों के बीच
ही कब्रें हैं और कहा जाता है कि ये
सोलहवीं सदी के एक सूफी संत और उनके
भक्तों की हैं। इस रेस्टोरेंट में हमेशा ही लोगों
की चहलपहल रहती है और इसके मालिक का
कहना है कि कब्रें उनका भाग्यशाली शुभंकर हैं।

13. भारत का सबसे ऊंचा और दु:खद झरना,
नोकालीकाई झरना, मेघालय :

चेरापूंजी के पास यह भारत का सबसे
ऊंचा उपर से गिरने वाला झरना है
जो कि 1115 फीट की ऊंचाई से
गिरता है। बरसात के पानी से बनने वाले
इस झरने का नामकरण एक
महिला 'का लीकाई' की दुखद
कहानी पर आधारित है। अपने
पति की मौत के बाद का लीकाई ने
दोबारा विवाह किया, लेकिन
उसका दूसरा पति उसकी सौतेली बेटी के
प्रति मां के प्यार को लेकर बहुत
ही ईर्ष्यालु था। उसने बेटी की हत्या कर
दी और उसके अंगों का भोजन बना दिया।
का लीकाई ने अपनी बेटी को हर जगह
खोजा लेकिन उसे पा नहीं सकी। वह थक
कर चूर अपने घर पहुंचती है और
उसका पति उसको भोजन देता है। खाने के
बाद वह यह देखकर भयभीत हो जाती है
कि उसकी बेटी की अंगुलियां सुपारी से
भरी टोकरी में पड़ी हैं। दुख और शोक से
भरी मां झरने से गिरकर अपनी जान दे
देती है। इस तरह इस झरने का नाम
'का लिकाई का झरना' हो गया।

14. झूलता खम्बा, लेपाक्षी, आंध्रप्रदेश :

यह छोटा सा गांव बहुत से प्राचीन
अवशेषों और वास्तु शिल्प के
आश्चर्यों का घर है। इनमें से एक है
लेपाक्षी मंदिर का झूलता हुआ खम्बा।
मंदिर के सत्तर खम्बों में से एक
बिना किसी सहारे के लटकता है। आगंतुक
इस खम्बे के नीचे से बहुत सारी वस्तुओं
को डालकर तय करते हैं कि इस खम्बे
को लेकर किए जा रहे दावे सच हैं या नहीं।
जबकि स्थानीय नागरिकों का कहना है
कि खम्बे के नीचे से विभिन्न वस्तुओं
को निकालने से लोगों के जीवन में
सम्पन्नता आती है।

15. दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप, माजुली, असम :

ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित माजुली विश्व का
सबसे  बड़ा नदी द्वीप है और इन्सानों और
भगवान की रचनाओं को मिलाने का समारोह
है। इस द्वीप की सुंदरता स्वर्ग जैसी है। यह
एक लोकप्रिय सांस्कृतिक गतिविधियों का भी
केन्द्र है जोकि श्रीमंत शंकरदेव के
विचारों को प्रसारित करता है।

16. शाश्वत ज्योति, ज्वाला जी मंदिर,कांगड़ा :

देवी से आशीर्वाद पाने के लिए सालभर लोग
कांगड़ा के ज्याला जी मंदिर में आते हैं। मंदिर के
ठीक बीच में एक खोखले पत्थर में एक लौ है
जोकि सैकड़ों वर्षों से जल रही है।
पौराणिक कहानियों के अनुसार भगवान
शिव की पत्नी सती ने तब दुख में अपने आप
को भस्म कर लिया था जब उनके पिता ने
शिव का ‍अपमान किया था। कहते हैं
कि जली हुई लाश को लेकर शिव ने तांडव
किया था और उनके ऐसा करने के दौरान
सती का शरीर 51 हिस्सों में बंटकर
पृथ्वी पर गिर गया था। इनमें से प्रत्येक
स्थान हिंदुओं के लिए एक तीर्थ बन गया।
कांगड़ा की ज्वाला जी को सती की जीभ
के तौर पर माना जाता है।

17. संघा तेनजिंग की प्राकृतिक ममी, गुए गांव, स्पीति :

अगर आप सोचते हैं कि ममीज केवल मिस्र में
ही पाई जाती हैं तो आप गलत हैं। हिमाचल प्रदेश
के स्पीति जिले के गुए गांव में तिब्बत के एक
बौद्ध भिक्षु संघा तेनजिंग
की ममी रखी हुई है जो कि पांच सौ वर्ष
पुरानी है। यह ममी बैठी हुई अवस्था में है
और इसकी त्वचा और बाल पूरी तरह
सुरक्षित हैं। संभवत: ऐसा इसलिए है
कि भिक्षु ने खुद को जीवित रहते हुए
ही ममी बनाने का काम किया होगा।
रासायनिक लेपों के जरिए शरीर
को सुरक्षित बनाने की तुलना में
प्राकृतिक तौर पर ममी बनाने
की प्रक्रिया बहुत ही जटिल और
अत्यधिक दुर्लभ है। इस ममी का पता 1975
में एक भूकम्प के बाद लगा था और तब से इसे
गुए के मंदिर में दर्शनार्थ रखा गया है।

18. विश्व का सबसे ऊंचा चाय बागान,
मोलुक्कुमालाई, तमिलनाडु :

मुन्नार से करीब डेढ़ घंटे की ड्राइव पर स्थित
मोलुक्कुमालाई चाय बागान समुद्र तल
की ऊंचाई से आठ हजार फीट ऊंचाई पर है।
यह तमिलनाडु के मैदानी इलाकों में पाए
जाने वाला सबसे ऊंचा है जो कि चारों ओर से
ऊंची- नीची पहाडियों से घिरा है। यहां यह तय
करना मुश्किल है कि कौन अधिक सुंदर है-
प्राकृतिक दृश्य या यहां पर पैदा होने
वाली सुगंधित चाय।

19. मोटरसाइकल देवता- बुलेट
बाबा मंदिर, राजस्थान :

अगर दुनिया में ऐसा कोई स्थान है जहां आप
एक मोटरसाइकिल को शराब की बोतलें और
फूलों को चढ़ाए जाने का रिवाज देखते हैं
तो यह भारत में ही संभव है। पाली जिले के
चोटीला निवासी ओमसिंह राठौड़
की उस समय मौत हो गई थी जब वे नशे
की हालत में मोटरसाइकिल चला रहे थे और
उनका वाहन एक पेड़ से जा टकराया था।
पुलिस ने बाइक को अपने कब्जे में ले
लिया और इसे थाने ले आई। लेकिन अगले
दिन बाइक फिर से दुर्घटना स्थल पर
ही पाई गई। पुलिस कर्मी फिर से इसे थाने
ले आए, इसका फ्यूल टैंक खाली कर
दिया और इसे चेन से बांध दिया। लेकिन
अगले दिन बाइक फिर घटनास्थल पर मौजूद
थी। इसके बाद मोटरसाइकल
को स्थायी रूप से उस स्थान पर रख
दिया गया। और इस स्थान को ओम
बाबा या बुलेट बाबा का नाम दे
दिया गया। यहां एक मंदिर
भी बना दिया गया। प्रत्येक दिन
यहां बड़ी संख्या में लोग प्रार्थना के
लिए आते हैं। समझा जाता है कि ओम
बाबा की आत्मा यात्रियों की रक्षा करती है।

20. विश्व की सबसे बड़ी विशालकाय
प्रतिमा, गोम्मटेश्वर प्रतिमा :

गोम्मटेश्वर या बाहुबली की श्रवणबेलगोला में
साठ फीट ऊंची प्रतिमा है। यह ग्रेनाइट की एक
चट्टान को काटकर बनाई गई है। यह
प्रतिमा इतनी बड़ी है कि यह 30
किमी की दूरी से देखी जा सकती है।
पौराणिक कहानियों के अनुसार
गोम्मटेश्वर एक जैन संत थे और उन्होंने अपने
जीवन काल के आधे समय में ही जीवन मरण के
चक्र से मुक्ति पा ली थी।
प्रतिमा को सबसे पहले गंग राजवंश के एक
मंत्री चामुंडाराय ने 978 और 994
सदियों के बीच बनवाया था। यह
दुनिया भर के जैन धर्म को मानने वालों के
लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। इस
विशाल प्रतिमा के पैरों के पास खड़े होकर
जब हम अपने आप को देखते हैं तो हमें इस बात
का अहसास होता है कि इसकी तुलना में
हम कितने बौने हैं।

21. ताज की आधी प्रतिकृति, बीबी का मकबरा, औरंगाबाद :

सत्रहवीं सदी के अंत में छोटा ताज
अपनी मूल प्रेरणा की तुलना में 30 से
भी कम वर्षों में बन गया था। इसे अक्सर
ही गरीबों का ताजमहल कहा जाता है।
इसका निर्माण कार्य औरंगजेब ने शुरू
कराया था और इसे उसके एक बेटे,
आजम शाह ने करवाया था। यह सम्राट
की पहली पत्नी और आजम
की मां की याद में बनवाया गया था।
हालांकि यह आगरा के प्रसिद्ध ताजमहल
की तुलना में हल्का पड़ता है लेकिन
बीबी का मकबरा अपनी आकर्षक
सादगी के लिए विख्यात है।

22. लिविंग रूट्स ब्रिज, चेरापूंजी,मेघालय :

मेघालय के चेरापूंजी में आदमी ने
प्रकृति को अपना मित्र बना लिया है और
इसकी मदद से अपने लिए नए रास्ते
भी बना लिए हैं। दुनिया में लोग पुल बनाते
हैं लेकिन मेघालय में लोग पुल उगाते हैं।
फिकस इलेस्टिका या रबर ट्री अपने
तनों से मजबूत सेकंडरी (द्वितीयक) जड़ें
पैदा करता है। यहां इन जड़ों को एक विशेष
तरीके से बेटल-नट ट्रंक्स (सुपारी के पेड़
की जड़ों) की मदद से ऐसे पुल बनाए हैं
जोकि मजबूत हैं और दशकों तक चलते हैं। इनमें
से कुछ पुल सौ फीट से अधिक लम्बे हैं।
उमशियांग का डबल डेकर पुल
समूची दुनिया में अपनी किस्म
का अकेला पुल है। कुछ पुराने रूट पुल तो 500
वर्षों से भी अधिक पुराने हैं।

23. दुनिया का सबसे चौड़ा बरगद, बॉटेनिकल गार्डन, हावड़ा :

कोलकाता के पास आचार्य जगदीश चंद्र
बोस बॉटेनिकल गार्डन, हावड़ा में
प्रकृति का सजीव व ताकतवर गौरव
का एक और उदाहरण खड़ा है। यहां 1250
वर्ष पुराना बरगद का पेड़ है
जिसका दायरा चार एकड़ के इलाके में
फैला हुआ है। इसे दुनिया का सबसे
चौड़ा पेड़ माना जाता है। इस पर
बिजली गिरने के बाद यह पेड़ बीमार
हो गया था और 1925 में इसके तने
को हटाया गया था। यह आज भी अपने
मुख्य तने के बिना सजीव है और इसकी 3300
हवाई जड़ें जमीन में प्रवेश कर गई हैं। यह
अकेला पेड़ ही एक जंगल की तरह प्रतीत
होता है।

24. दुनिया की एकमात्र तैरती हुई झील, लोकताक झील, मणिपुर :

भारत के उत्तर पूर्व में सबसे बड़ी ताजे पानी
की झील है जिसे लोकताक झील कहा जाता है। इसके तैरते हुए द्वीपों की श्रंखला के कारण इसे
विश्व की एकमात्र तैरती हुई झील
भी कहा जाता है। इसकी प्राकृतिक
सुंदरता के अलावा यह झील मणिपुर
की अर्थव्यवस्था में अहम
भूमिका निभाती है। इससे
पनबिजली बनती है, सिंचाई होती है,
पीने योग्य पानी की आपूर्ति होती है
और स्थानीय मछुआरों को आजीविका
मिलती है। लोकताक झील पर सबसे बड़ा
द्वीप कैबुल लामजो नेशनल पार्क है जोकि
मणिपुर के ब्रो-एंटलर्ड डीयर या थामिन का
अंतिम प्राकृतिक शरणस्थली है। यह राज्य
का लुप्तप्राय हिरण है जिसका संरक्षण
बहुत अनिवार्य है।

25. कुत्ते का मंदिर, चन्नापाटना,कर्नाटक :

रामनगर जिले के चन्नापाटना में
एक समुदाय है जिसने श्वान के सम्मान में एक
असामान्य मंदिर बनाया है। श्वान
देवता का आशीर्वाद पाने के लिए
यहां लोग पूजा करते हैं। स्थानीय
लोगों का कहना है कि कुत्ते
को स्वामीभक्त और अच्छे स्वभाव
वाला माना जाता है, लेकिन समय-समय
पर वह दुर्जेय भी साबित होते हैं।
कहा जाता है कि श्वान देवता गांव के
देवता के साथ मिलकर अपने काम करते हैं।

26. गुरुत्वाकर्षण रोधी महल, बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ :

वास्तुकला का यह नायाब नमूना 18वीं सदी में
बनवाया गया था और इसे अवध के नवाब
आसफ उद्दौला ने बनवाया था। उन्होंने
इसमें यूरोपीय और अरबी वास्तुकला का
मिश्रण है। इसका मध्य में बना मेहराबदार हॉल
50 मीटर लम्बा और करीब तीन मंजिलों तक
ऊंचा है और बिना किसी बीम या खम्बे
की मदद के खड़ा रहता है। इसके मुख्य द्वार
को भूलभुलैया के लिए जाना जाता है
जोकि 1000 से अधिक सीढ़ियों का रास्ता का है।
इमामबाड़ा कॉम्प्लेक्स में हरेभरे बगीचे, एक
दर्शनीय मस्जिद और एक बावड़ी है।

27. तैरते पत्थर, रामेश्वरम्, तमिलनाडु :

पम्बन द्वीप पर स्थित और पम्बन नहर के
द्वारा भारत के मुख्य पर्वतीय भाग से
विभाजित रामेश्वरम का छोटा कस्बे
का हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व
है। समझा जाता है कि रामजी ने
सीताजी को श्रीलंका से छुड़ाने के लिए
लंका तक एक पुल का निर्माण किया था।
इस पुल को बनाने के लिए जिन
पत्थरों का उपयोग किया गया था उन पर
राम का नाम लिखा था और ये पत्थर
पानी में कभी नहीं डूबे। आश्चर्यजनक तथ्य
यह है कि आज भी रामेश्वरम के आसपास ऐसे
'तैरने वाले पत्थर' पाए जाते हैं।

28. लाल बारिश, इडुक्की, केरल :

अपनी आकर्षक और स्वादिष्ट समुद्रतटीय
कड़ी के अलावा, इडुक्की को एक विचित्र
तथ्य के लिए जाना जाता है। इसे 'रेड रेन'
या लाल बारिश कहा जाता है।
कहा जाता है कि वर्ष 1818 में सबसे पहले
लाल बारिश की घटना को रिकॉर्ड
किया गया। इसके बाद इडुक्की में समय-
समय पर इस घटना को देखा गया है।
इडुक्की को एक लाल क्षेत्र के तौर पर
चिन्हित किया गया है। हिंदुओं के
धर्मग्रंथों में लाल बारिश को देवताओं
का कोप कहा गया है और
देवता अपराधियों को दंड दे रहे हैं।
इसका अर्थ मौत और बरबादी भी समझा
जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि निर्दोषों
की हत्या के  कारण लाल बारिश होती है,
लेकिन इस मामले पर वैज्ञानिकों ने अपना कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।

29. ग्रामीण ओलिम्पिक्स, किला रायपुर, लुधियाना :

प्रति वर्ष की फरवरी में लुधियाना के किला
रायपुर गांव में पर्यटकों और स्थानीय निवासियों
को किसानों की शौकिया खेल प्रतियोगिताएं
होती हैं। यह आयोजन किले में और इसके
आसपास होता है। ये ग्रामीण ओलिम्पिक्स एक
परोपकारी सज्जन इंदरसिंह ग्रेवाल के
दिमाग की उपज थे। उन्होंने इनके आयोजन के
बारे में वर्ष 1933 में विचार किया था। इन
प्रतियोगिताओं के दौरान बैलों की दौड़,
टेंट पेगिंग, गतका, ऊंटों, खच्चरों और कुत्तों
की दौड़ होती हैं। इस अवसर पर पंजाबी
लोकगीतों और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं और ये खेल अपने आप में एक वास्तव में आनंदित करने वाला अनुभव होता है।

30. वीजा देवता का मंदिर, बालाजी मंदिर, चिल्कुर, हैदराबाद :

कुछ देवता आपको समृद्धि देते हैं, कुछ रक्षा करते
हैं लेकिन चिल्कुर में बालाजी मंदिर के
देवता आपको अमेरिका का वीजा दिलाने
की सामर्थ्य रखते हैं। यह मंदिर हैदराबाद
के बाहरी इलाके में स्थित है। इसे
वीजा बालाजी मंदिर के नाम से
जाना जाता है। डॉलरों का सपना देखने
वाले बहुत से लोग, जोकि किसी भी धर्म
और जाति के हो सकते हैं, अपने
वीजा इंटरव्यू से पहले मंदिर में आशीर्वाद
लेने के लिए आते हैं। यहां आने वाले
लोगों को अगर वीजा मिल जाता है
तो उन्हें अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनी होती है और
मंदिर के अंदर के हिस्से की 108 बार
परिक्रमा करनी पड़ती है। आप भले इस बात
पर हंस सकते हैं, लेकिन यह पुरानी दुनिया में
नई मान्यताओं का एक प्रशंसनीय उदाहरण
है।

भारत में सारी अद्भुत और आश्चर्यजनक चीजें
देखने के लिए शायद एक जिंदगी कम पड़ जाए
इसलिए संभव है कि इसी कारण से हम
भारतीय पुनर्जन्म में भी विश्वास करते हैं
ताकि पिछले जन्मों के अधूरे
कामों को पूरा कर सकें।
(scoopwhoop.com से साभार)