सभी तृणभक्षियों में जिराफ सबसे अधिक विलक्षण एवं आकर्षक है। वह संसार का सबसे ऊंचा जीव है। उसकी अधिकतम ऊंचाई ५.५ मीटर होती है। इस ऊंचाई का लगभग आधा उसकी मीनार जैसी लंबी गर्दन है। आश्चर्य की बात यह है कि इस लंबी गर्दन में
भी हड्डियों की संख्या उतनी ही होती है जितनी कि हमारी या किसी भी स्तनधारी की गर्दन में होती है, यानी सात। इस ऊंची गर्दन को संतुलित रखने के लिए जिराफ के आगे के दोनों पैर भी खूब लंबे होते हैं। इन पैरों के सिरे पर गाय-भैंस की तरह दो खुर होते हैं। जिराफ के सिर पर बालों से ढके दो छोटे सींग भी होते हैं। इन सींगों के भीतर हड्डियां नहीं होतीं। जिराफ की छोटी सी पूंछ के सिरे पर गाय की पूंछ के समान बालों का एक गुच्छा होता है।
जिराफ केवल अफ्रीका में पाए जाते हैं और वहां उनकी दो जातियां हैं। दोनों में शरीर पर बनी चिकत्तियों का आकार अलग होता है। मसाई जिराफ में ये चिकत्तियां तारे के आकार की होती हैं, जबकि रेटिक्युलेटेड जिराफ में ये चौकोर होती हैं।
जिराफ की गर्दन की असाधारण ऊंचाई के बारे में वैज्ञानिकों ने अनेक अटकलें लगाई हैं। इन विद्वानों में प्रसिद्ध जीवशास्त्री चार्ल्स डारविन भी शामिल है। इन वैज्ञानिकों के विचार के अनुसार शुरू शुरू में जिराफ घोड़े के समान साधारण लंबाई की गर्दनवाला प्राणी था। वह अन्य तृणभक्षियों के समान घास-पत्ती आदि खाता था। घास-पात खानेवाले और भी अनेक प्राणी थे, जैसे हिरण, घोड़े, गाय-भैंस आदि आदि।
अतः इन चीजों के लिए इन जीवों में काफी प्रतिस्पर्धा होती थी। इस प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए जिराफ
पेड़ों की उन ऊंची डालियों पर लगे पत्तों को खाने लगे। वे पेड़ों की ऊपरी डालियों तक पहुंचने के लिए
अपनी गर्दन को अक्सर ऊपर बढ़ाया करते थे। कुछ जिराफ प्राकृतिक रूप से ही अन्यों से अधिक लंबी गर्दन वाले पैदा हुए। वे अपनी लंबी गर्दन के कारण
अधिक भोजन प्राप्त करने में सफल हुए। इस कारण से वे अन्य जिराफों से अधिक समय तक जीवित रह सके और अधिक संख्या में संतान छोड़ सके। इन संतानों में भी अपनी माता-पिता के समान लंबी गर्दन का गुण मौजूद था। जिराफों की इस पीढ़ी में से
भी प्रकृति ने उन जिराफों को अधिक सफल बनाया जिनकी गर्दन सामान्य से अधिक लंबी थी। जब हजारों सालों तक इस प्रकार का प्राकृतिक चयन
होता रहा तो जिराफों की गर्दन की लंबाई आजकल की जितनी हो गई।
जिराफों की दृष्टि अत्यंत तीक्ष्ण होती है और चूंकि उनकी ऊंचाई भी बहुत अधिक है, इसलिए वे दूर-दूर तक देख सकते हैं। जब वे सिंह आदि परभक्षियों को देख लेते हैं, तब ५० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भाग निकलते हैं। जमीन चाहे जितना ऊबड़- खाबड़ क्यों न हो, उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती। यद्यपि जिराफ देखने में काफी अटपटी बनावट के जीव लगते हैं, लेकिन दौड़ते समय उनका सारा अटपटापन दूर हो जाता है और उनकी छटा देखते
ही बनती है। दौड़ते समय वे शरीर के एक तरफ
के दोनों पैरों को एक-साथ आगे बढ़ाते हैं, इसलिए दौड़ने की उनकी शैली अन्य तृणभक्षियों से भिन्न होती है। जब कोई जिराफ शत्रुओं द्वारा घिर जाता है तब अपना बचाव करने के लिए अपने आगे के पैरों से
लात मारता है। सिंह आदि इन पैरों की चपेट में आ जाएं तो एक ही लात में उनका काम तमाम हो जाता है।
जिराफ सूखे, खुले वनों में रहते हैं और वे पेड़ों की ऊंची डालियों को चरते हैं। अपनी ऊंचाई के कारण वे उन पत्तों तक भी पहुंच जाते हैं जो अन्य जानवरों की पहुंच के बाहर होते हैं। वे दिन भर और कभी कभी रात को भी चरते रहते हैं। पानी पीते वक्त उन्हें थोड़ी तकलीफ होती है क्योंकि उन्हें अपनी लंबी गर्दन
को पानी तक झुकाना पड़ता है। इसके लिए वे आगे के दोनों पैरों को खूब फैला लेते हैं और धीरे-धीरे गर्दन को झुकाते हैं। इस अवस्था में वे कई बार सिंह का शिकार हो जाते हैं क्योंकि झुके होने पर वे सिंह के
आगमन को भांप नहीं पाते।
यद्यपि जिराफ अत्यंत कोमल स्वभाव के प्राणी हैं, लेकिन नर कई बार आपस में लड़ते हैं। तब वे अपनी लंबी गर्दन से प्रतिद्वंद्वी पर वार करते हैं। चिड़ियाघरों और सफारी उद्यानों में जिराफ आसानी से पालतू बन जाते हैं और प्रजनन भी करते हैं। उनके बच्चे अत्यंत सुंदर और मन को मोहने वाले स्वरूप के होते ह
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