આ બ્લોગમાં વર્તમાનપત્રો, મેગેઝિનો, વિકીપીડીયા,GK ની વેબસાઇટો, વગેરે માધ્યમોનો સંદર્ભ તરીકે ઉપયોગ કરવામા આવેલ છે જે માટે સૌનો હ્રદયપૂર્વક આભાર વ્યક્ત કરુ છુ.બ્લોગથી મને લેશમાત્ર આવક નથી.જેની નોંધ લેશો.

Monday, 5 September 2016

♥ गणेशोत्सव ♥

गणेशोत्सव (गणेश चतुर्थी) हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तिथि तक मनाया जाता है।

यद्यपि गणेशोत्सव पूरे भारत में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, किंतु महाराष्ट्र में इसका विशेष महत्त्व है। गणेशोत्सव में भगवान गणेश की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है। यह भगवान गणेश को समर्पित प्रमुख तिथियों में से एक गणेश चतुर्थी से प्रारम्भ होकर 'अनन्त चतुर्दशी' (अनन्त चौदस) तक चलने वाला दस दिवसीय महोत्सव है।

यह माना जाता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाए तो जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं।

इतिहास

महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी। कहा जाता है कि शिवाजी की माता जीजाबाई ने पुणे के क़स्बा गणपति में गणेश जी की स्थापना की थी और पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बहुत अधिक बढ़ावा दिया।

मूलतः गणेशोत्सव पारिवारिक त्यौहार था, किन्तु बाद के दिनों में बाल गंगाधर तिलक ने इस त्यौहार को सामाजिक स्वरूप दे दिया तथा गणेशोत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया।

तिलक का योगदान

बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव के द्वारा आज़ादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित किया। गणेशोत्सव की विधिवत शुरुआत 1893 ई. में महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी।

1893 ई. के पहले भी गणपति उत्सव बनाया जाता था, लेकिन वह सिर्फ घरों तक ही सीमित था। उस समय आज की तरह पंडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सामूहिक गणपति विराजते थे।

बाल गंगाधर तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। यह बात ब्रिटिश अफ़सर भी अच्छी तरह जानते थे कि अगर किसी मंच से तिलक भाषण देंगे तो वहाँ आग बरसना तय है।

तिलक 'स्वराज' के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहाँ से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें। इस काम को करने के लिए उन्होंने 'गणपति उत्सव' (गणेशोत्सव) को चुना और इसे सुंदर भव्य रूप दिया, जिसे आज हम देखते हैं।

बाल गंगाधर तिलक के इस कार्य से दो फ़ायदे हुए, एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया। इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आज़ादी की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई।

तिलक द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी भारतीय पूरी धूमधाम से मनाते रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे। आज महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विश्व भर में प्रसिद्ध है, जहाँ गणेश भगवान को मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है।


No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.