जानिए कि क्यो छु नहि पाया रावण सिता माता को?
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♥ (1) सिर्फ सीता के अपहरण के कारण ही राम
के हाथों रावण की मृत्यु हुई थी। यह उस
समय की बात है, जब भगवान शिव से
वरदान और शक्तिशाली खड्ग पाने के बाद
रावण और भी अधिक अहंकार से भर
गया था। वह पृथ्वी से भ्रमण करता हुआ
हिमालय के घने जंगलों में जा पहुंचा।
वहां उसने एक रूपवती कन्या को तपस्या में
लीन देखा। कन्या के रूप-रंग के आगे रावण
का राक्षसी रूप जाग उठा और उसने उस
कन्या की तपस्या भंग करते हुए
उसका परिचय जानना चाहा।
काम-वासना से भरे रावण के अचंभित करने
वाले प्रश्नों को सुनकर उस कन्या ने
अपना परिचय देते हुए रावण से कहा कि 'हे
राक्षसराज, मेरा नाम वेदवती है। मैं परम
तेजस्वी महर्षि कुशध्वज की पुत्री हूं। मेरे
वयस्क होने पर देवता, गंधर्व, यक्ष, राक्षस,
नाग सभी मुझसे विवाह करना चाहते थे,
लेकिन मेरे पिता की इच्छा थी कि समस्त
देवताओं के स्वामी श्रीविष्णु ही मेरे
पति बनें।'
मेरे पिता की उस इच्छा से क्रुद्ध होकर शंभू
नामक दैत्य ने सोते समय मेरे
पिता की हत्या कर दी और मेरी माता ने
भी पिता के वियोग में
उनकी जलती चिता में कूदकर अपनी जान दे
दी। इसी वजह से यहां मैं अपने
पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए इस
तपस्या को कर रही हूं।
इतना कहने के बाद उस सुंदरी ने रावण
को यह भी कह दिया कि मैं अपने तप के बल
पर आपकी गलत इच्छा को जान गई हूं।
इतना सुनते ही रावण क्रोध से भर गया और
अपने दोनों हाथों से उस कन्या के बाल
पकड़कर उसे अपनी ओर खींचने लगा। इससे
क्रोधित होकर अपने अपमान
की पीड़ा की वजह से वह कन्या दशानन
को यह शाप देते हुए अग्नि में समा गई कि मैं
तुम्हारे वध के लिए फिर से
किसी धर्मात्मा पुरुष की पुत्री के रूप में
जन्म लूंगी।
महान ग्रंथों में शामिल दुर्लभ 'रावण
संहिता' में उल्लेख मिलता है कि दूसरे जन्म
में वही तपस्वी कन्या एक सुंदर कमल से
उत्पन्न हुई और जिसकी संपूर्ण काया कमल
के समान थी। इस जन्म में भी रावण ने फिर
से उस कन्या को अपने बल के दम पर प्राप्त
करना चाहा और उस कन्या को लेकर वह
अपने महल में जा पहुंचा।
जहां ज्योतिषियों ने उस
कन्या को देखकर रावण को यह
कहा कि यदि यह कन्या इस महल में
रही तो अवश्य ही आपकी मौत का कारण
बनेगी। यह सुनकर रावण ने उसे समुद्र में
फिंकवा दिया।
तब वह कन्या पृथ्वी पर पहुंचकर राजा जनक
के हल जोते जाने पर उनकी पुत्री बनकर फिर
से प्रकट हुई। मान्यता है कि बिहार
स्थिति सीतामढ़ी का पुनौरा गांव वह
स्थान है, जहां राजा जनक ने हल
चलाया था। शास्त्रों के अनुसार
कन्या का यही रूप सीता बनकर रामायण
में रावण के वध का कारण बना।
♥ (2) अद्भुत रामायण में उल्लेख है कि 'रावण
कहता है कि जब मैं भूलवश अपनी पुत्री से
प्रणय की इच्छा करूं, तब वही मेरी मृत्यु
का कारण बने।'
रावण के इस कथन से ज्ञात होता है
कि सीता रावण की पुत्री थीं। अद्भुत
रामायण में उल्लेख है कि गृत्स्मद नामक
ब्राह्मण लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने
की कामना से प्रतिदिन एक कलश में कुश के
अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध
की बूंदें डालता था। एक दिन जब ब्राह्मण
कहीं बाहर गया था, तब रावण
इनकी कुटिया में आया और यहां मौजूद
ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर
लिया। यह कलश लाकर रावण ने
मंदोदरी को सौंप दिया।
रावण ने कहा कि यह तेज विष है, इसे
छुपाकर रख दो। मंदोदरी रावण
की उपेक्षा से दुःखी थी। एक दिन जब
रावण बाहर गया था तब मौका देखकर
मंदोदरी ने कलश में रखा रक्त पी लिया।
इसके पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गई।
लोक-लाज के डर से
मंदोदरी अपनी पुत्री को कलश में रखकर उस
स्थान पर छुपा गई, जहां से जनक ने उसे
प्राप्त किया। सीता के संदर्भ में एक अन्य
कथा वेदवती नाम की स्त्री से संबंधित है।
वेदवती से जुड़ी कहानी हम पहले बता चुके
हैं।
♥ (3) त्रिजटा नाम की राक्षसी को रावण ने
सीता की रक्षा के लिए अशोक
वाटिका में राक्षसनियों की हेड बनाकर
रखा था।
सभी राक्षसनियां सीता माता को डराती रहती थीं और
रावण से विवाह करने के लिए
उकसाती रहती थीं लेकिन त्रिजटा धर्म
को जानने वाली और प्रिय वचन बोलने
वाली थी।
त्रिजटा ने सीता को सांत्वना देते हुए
कहा कि 'सखी तुम चिंता मत करो।
यहां एक श्रेष्ठ राक्षस रहता है
जिसका नाम अविंध्य है। उसने तुमसे कहने के
लिए यह संदेश दिया है कि तुम्हारे
स्वामी भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के
साथ कुशलपूर्वक हैं। वे अत्यंत
शक्तिशाली वनराज सुग्रीव के साथ
मित्रता करके तुम्हें छुड़वाने की कोशिश
कर रहे हैं।'
त्रिजटा ने सीता को एक राज की बात
और बताई यह कि तुम्हें रावण से
नहीं डरना चाहिए, क्योंकि रावण ने कुबेर
के पुत्र नलकुबेर की पत्नी अप्सरा,
रंभा को काम-वासना से छुआ
था तो रंभा ने क्रोधित होकर रावण
को शाप दिया कि वह किसी पराई
स्त्री के साथ उसकी इच्छा बिना संबंध
नहीं बना पाएगा और अगर
ऐसा किया तो वह भस्म हो जाएगा।
अन्य जगहों पर उल्लेख मिलता है कि रावण
ने रंभा के साथ बलात्कार करने का प्रयास
किया था जिसके चलते रंभा ने उसे यह शाप
दिया था।
रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबेर के साथ
पत्नी की तरह रहती थी। रंभा-नलकुबेर के
संबंध को लेकर रावण अक्सर उपहास
उड़ाया करता था।
इसी शाप के भय से रावण ने सीताहरण के
बाद सीता को छुआ तक नहीं था।
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