♥ एक संक्षिप्त परिचय फोर्मुला वन का?
फोर्मुला वन या एफ.वन(F1) जिसे
आधिकारिक तौर पर FIA फ़ॉर्मूला वन
वर्ल्ड चैम्पियनशिप के नाम से
जाना जाता है वह ऑटो रेसिंग
का उच्चतम वर्ग है.फोर्मुला वन रेस में
"फ़ॉर्मूला" शब्द नियमों के एक सेट
को कहा जाता है जिसे सभी टीमों और
रेसर्स को पालन करना होता है.एफ वन रेस
की श्रृंखला को ग्रैंड्स प्रिक्स के नाम से
जाना जाता है जो दुनिया भर में अलग
अलग देशों और शहरों में आयोजित
किया जाता है.आमतौर पे एक साल में
18-20 रेस होती हैं..इन सभी रेस के
परिमाणों को जोड़ कर ही साल
का वर्ल्ड चैम्पियन
चुना जाता है..फोर्मुला वन में दो वर्ल्ड
चैम्पियनशिप्स खिताब दिए जाते हैं
जिनमे से एक चैम्पियनशिप ड्राइवरों के
लिए और एक निर्माताओं(Constructor
title) के लिए होता है.मुख्य
खिताब चैम्पियनशिप
ड्राइवरों का ही होता है जिसे FIA
Formula One World Champion Title
कहा जाता है.
एक फोर्मुला वन ग्रैंड प्रिक्स इवेंट तीन
दिन चलता है सप्ताह में.शुक्रवार और
शनिवार को दो प्रैक्टिस रेस होते हैं और
फिर शनिवार को अंतिम प्रैक्टिस रेस के
बाद एक क्वालिफाइंग रेस
होता है.क्वालिफाइंग रेस से ही ये
निर्धारित होता है की रविवार
को मुख्य इवेंट में कौन से ड्राइवर
स्टार्टिंग ग्रिड में रहेंगे.जो शनिवार
को हुए क्वालिफाइंग रेस में पहले स्थान पे
आते हैं,रविवार को रेस-ग्रिड में वही पहले
स्थान पे भी रहते हैं.इसे फोर्मुला वन में
"पोल पोजीसन" के नाम से
जाना जाता है.जो भी ड्राइवर पोल
पोजीसन(ग्रिड में पहले स्थान पे) लेते हैं उन्हें
एक एडवांटेज मिलती है.ये देखा गया है
की अधिकाँश रेसों में उन्ही की जीत हुई
है जिन्होंने पोल पोजीसन लिया है.
रविवार का दिन होता है मुख्य रेस
का और ये रेस आमतौर पे 50-65 लैप तक
चलता है.रेस को हर हाल में दो घंटे में खत्म
हो जाना होता है.रेस के दौरान ड्राइवर
कम से कम एक "पिट-स्टॉप" ले सकते हैं
जिसमे टायरों को बदला जाता है,गाड़ी में आई
कोई अन्य नुक्सान की मरम्मत
होती है.2010 के सीजन तक पिट-स्टॉप में
ड्राइवर फिर से फ्यूल भी भर सकते थे,
लेकिन अब पिट-स्टॉप के दौरान इंधन भरने
पे रोक लग गयी है. अलग-अलग टीम और
ड्राइवर अपने अपने कारकी क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से अलग- अलग पिट स्टॉप रणनीतियां अपनाते हैं.आमतौर पे एक ड्राइवर पुरे रेस के दौरान
दो पिट-स्टॉप लेना चाहिए.रविवार के
रेस में जो प्रथम स्थान पे आते हैं उन्हें
25पॉइंट मिलते हैं, दूसरे स्थान पे जो आते हैं
उन्हें 18 और तीसरे स्थान वाले ड्राइवर
को 15 पॉइंट.इन पॉइंट को चैम्पिअनशिप
पॉइंट कहा जाता है.फोर्मुला वन रेस
को सबसे तेज गति का रेस इसलिए
भी कहा जाता है क्यूंकि आमतौर पे
50-65 लैप की दुरी कुछ 320-360
किलोमीटर तक की होती है जिसे
पूरा करने में लगभग हर कर को दो घंटे
या उससे भी कम का वक्त लगता है.
♥ फोर्मुला वन के कार की खास बात
क्या है?
फोर्मुला वन कार दुनिया की सबसे तेज
चलने वाली उच्च गति की सर्किट रेसिंग
कार होती है.इन कारों की टॉप स्पीड
360-380Kmph के आसपास होती है.इन
कारों का प्रदर्शन बहुत हद
तक एरोडाइनैमिक,इलेक्ट्रोनिक, सस्पेंसन
और टायर कण्ट्रोल के ऊपर निर्भर
करता है.एफ.वन कारों का वजन लगभग
640kg होता है.इसके इंजन आमतौर पे
2.4L/V8 होते हैं.अब तक के फोर्मुला वन
कारों में सबसे तेज गति से चलने
वाली गाड़ी होंडा एफ.वन की रही है,
जो मोजेव रेगिस्तान में एक रनवे पे
420Kmph तक के टॉप स्पीड पे
गयी थी.पहले हर फोर्मुला वन इंजन
को बस एक सप्ताहांत के बाद बदल
दिया जाता था लेकिन अब के आये नए
नियमों के अनुसार एक सीजन में प्रत्येक
ड्राइवर आठ से अधिक इंजन का इस्तेमाल
नहीं कर सकता है यदि आठ से अधिक इंजन
का इस्तेमाल किया जाता है, तो उसे
रेस-ग्रिड में दस स्थान छोड़कर रेस शुरू
करना होगा.कुछ इसी तरह के नए
नियम गियरबॉक्स पे भी लागू हुए
हैं.प्रत्येक ड्राइवर को एक गियरबॉक्स
का इस्तेमाल कम से कम चार रेस तक
करना अनिवार्य है.
फोर्मुला वन कार का निर्माण इस तरह
से किया जाता है
की कितना भी भयानक क्रैश क्यों न
हो, ड्राइवर सुरक्षित रहें.ड्राइवर के
कॉकपिट को "टब" कहा जाता है और ये
बहुत ही मजबूर कार्बन फाइबर से
बना होता है, जो किसी भी भयानक
क्रैश को सहने की क्षमता रखता है,
लेकिन फिर भी बहुत बार भयानक क्रैश ने
ड्राइवरों की जान भी ली है.
♥ फोर्मुला वन रेस के नियम क्या हैं?
फोर्मुला वन रेस में नियमों की बाढ़
सी है.हर कुछ के लिए अलग
नियम.गाड़ियों के चुनाव से लेकर
ड्राइवरों,टेस्ट-ड्राइवरों के चुनाव
तक.ट्रैक के बनावट से लेकर पिट-स्टॉप
तक.गाड़ियों में कौन से कोम्पोनेंट लगेंगे
और गाड़ियां किस स्पीड तक
जा सकती हैं, कौन से इंजन लगेंगे, हर चीज़
के लिए अलग नियम हैं.यहाँ तक की रेस के
दौरान भी नियमों का एक अलग सेट
है.कहा जाता है
की बाकी खेलों की तुलना में एफ.वन में
सबसे ज्यादा नियम हैं.फोर्मुला वन
कमिटी FIA लगभग हर साल नियमों में
बदलाव करती है.
♥ क्या फोर्मुला वन गाड़ियां टनल में चल
सकती हैं?
जी हाँ, फोर्मुला वन कार टनल में आराम
से चल सकती हैं.आप सोच रहे होंगे की टनल
में तो सभी गाड़ियां चल सकती हैं
तो इसमें क्या खास बात है.तो फिर गौर
से सुनिए, फोर्मुला वन कार टनल के
उपरी दीवारों पे भी उलटी चल
सकती है..ये सच है.फोर्मुला वन
गाड़ियों में जो एरोडाइनैमिक तकनीक
इस्तेमाल की गयी है वो बहुत
ज्यादा मात्रा में डाउनफ़ोर्स उत्पन्न
करती है.एक फोर्मुला वन गाड़ी 3.5gs
तक का फ़ोर्स उत्पन्न कर सकती है और बहुत
ही तेज स्पीड पे
गाड़ी रही तो उपरी दीवारों पर
भी उलटी चल सकती है.यकीन
नहीं आया इस बात पे?? इधर पढ़ लीजिए
फोर्मुला वन के अब तक के शीर्ष ड्राइवर्स
कौन कौन हैं?
१.माइकल शुमाकर(7 चैम्पियनशिप टाइटल)
२.जुआन मैनुअल फंजियो(5 चैम्पियनशिप
टाइटल)
३.एलैन प्रोस्ट(4 चैम्पियनशिप टाइटल)
४.एर्टन सेना(3 चैम्पियनशिप टाइटल)
कुछ मजेदार जानकारियां फोर्मुला वन से
सम्बंधित
--> एक फोर्मुला वन कार में औसतन
80000 मकैनिकल पुर्जे लगे होते हैं.कार
बनाते समय इस बात का धयान पूरी तरह
रखना पड़ता है की सभी पुर्जे शत-प्रतिशत
सही रूप से सही ढंग से लगे हैं.अगर पुर्जे
लगाने में 0.1% की भी गलती हुई है
तो भी ट्रैक पे चलने के समय लगभग 80 पुर्जे
गलत जगह लगे हुए होंगे.
--> एक फोर्मुला वन कार के इंजन
की औसत आयु दो से तीन रेस
की ही होती है, फिर वो इंजन
किसी भी अन्य रेसों में इस्तेमाल करने
लायक नहीं रह जाता..
बाकी गाड़ियों की तुलना में ये बहुत कम
है. बाकि गाड़ियों के इंजन की औसत आयु
20 सालों की होती है.
--> जब एक फोर्मुला ड्राईवर ब्रेक
लगता है तो उसे बहुत ही विशाल
रीटार्डेशन और डिसेलरैशन का अनुभव
होता है.आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की जब
भी एक फ़ॉर्मूला वन ड्राईवर ब्रेक
लगता है तो वो बिलकुल वैसा ही महसूस
करता है जैसा की जब आप 300km /hr के
रफ़्तार से किसी इंट की दीवार से
टकरा गए हो.
--> एक एफ.वन कार को 0 -160km
की स्पीड पकड़ने में और फिर वापस
0Kmph तक आने में औसतन 0-4 सेकंड तक
का समय लगता है.
--> बहुत से ड्राईवर अपने कार के चक्कों में
नाइट्रोजन का इस्तेमाल करते हैं.इसके पीछे
ये कारण है की नाइट्रोजन हवा से
ज्यादा अच्छा दबाव और संतुलन देता है
गाड़ी को.
--> एक फ़ॉर्मूला कार में इंधन भरने में केवल
08-12 सेकंड का वक़्त लगता है.जिस रिग
से फोर्मुला वन के कारों में इंधन
डाला जाता है, अगर उसी रिग
का इस्तेमाल अगर आम गाड़ियों में इंधन
डालने के लिए किया जाए
तो गाड़ी की पेट्रोल टंकी 3-5 सेकण्ड में
पूरी भर जायेगी.
--> फोर्मुला वन रेस के दौरान जब
गाड़ियां पिट-स्टॉप के लिए रूकती हैं
तो मेकेनिकों को गाड़ी के चक्के बदलने,
इंधन डालने(हालांकि अब इंधन डालने
की मनाही है),सर्विसिंग करने में आमतौर
पे 4-7 सेकण्ड का वक्त लगता है.अगर
किसी गाड़ी का पिट-स्टॉप दस सेकण्ड
से ऊपर चला गया तो समझिए उसके कम से
कम चार स्थान पीछे होना पड़ेगा.
--> आमतौर पे सड़को पे चलने
वाली गाड़ी के चक्के लगभग 60000
-100000 km तक चलने लायक बनाये जाते
हैं, लेकिन F1 गाड़ियों के चक्के बस 90
-120 km तक ही चलते हैं.
--> औसतन एक एफ.वन रेस में ड्राईवर
का वजन 5 -6 kg तक घटता है.ये गाड़ी के
अन्दर बने अत्यधिक दबाव और बेहद
ही ज्यादा तापमान के वजह से होता है.
--> फोर्मुला वन कारों की एरोडाइनैमिक इतनी जबरदस्त होती है, ये आप इसी बात से अनुमान
लगा सकते हैं की एक छोटे प्लेन को टेक-
ऑफ करने से भी कम वक़्त एक एफ.वन कार
को पिकप लेने में लगता है, जब वो ट्रैक पे
चलता है.
--> गर्मी के दिनों में फोर्मुला वन कार
के चक्कों का तापमान 900 -1200
डिग्री तक पहुच जाता है.
--> एक रेस के दौरान कॉकपिट का तापमान 50-70 डीग्री तक पहुँचता है.
--> कभी कभी गर्मियों के दिन में
कभी कभी एक रेस के दौरान ड्राइवर 7-8
लीटर तक पानी पी जाते हैं.ड्राइवरों के कॉकपिट में पानी के बोतल पहले से रखे होते हैं और एक पाईप
लगी होती है जिससे ड्राइवर जब चाहे
पानी पी सकते हैं, चलाते वक्त भी.
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